लोभ मोह की ओढ़ चुनरिया, मैं मूरख अझुराया।
28 मात्रिक गीत
संकट में है नाव हमारी, प्रभुजी पार लगाओ।
मैं अबोध बालक अज्ञानी, सत्य राह दिखलाओ।
शुष्क मरुस्थल वृक्ष रिक्त यह, पथरीली हैं राहें।
भवसागर तुम पार करा दो, फैला दो प्रभु बाहें।
जीवन बगिया सूख रही है, नेह मेंह बरसाओ।
मैं अबोध बालक अज्ञानी, सत्य राह दिखलाओ।
लोभ मोह की ओढ़ चुनरिया, मैं मूरख अझुराया।
अंत समय जब नींद खुली तो, खुद को तनहा पाया।
जीवन पथ में शूल बहुत हैं, निष्कंटक कर जाओ।
मैं अबोध बालक अज्ञानी, सत्य राह दिखलाओ।
जीवन भर जिस पद पैसे का, सबपर रौब जमाया।
जोड़ घटाना कर के देखा, रिक्त हथेली पाया।
अहंकार जो जीवन में हैं, उनको दूर हटाओ।
मैं अबोध बालक अज्ञानी, सत्य राह दिखलाओ।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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