** लोभी क्रोधी ढोंगी मानव खोखा है**
** लोभी क्रोधी ढोंगी मानव खोखा है**
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जिसको जितना हद में मिलता मौका है,
आगे बढ़ता रहता दे कर धोखा है।
दी दिन का है जीवन मेला दुनिया का,
पल में जीना – मरना जैसे झोंका है।
ज्वारों; भाटो सा घटता बढ़ता जीवन,
सागर की लहरों को किसने रोका हैँ।
दरमियाँ दरिया फँसती नैया मानव की,
इंसानो की देखी टूटो नौका है।
मनसीरत मन मंदिर मानवता पूजों,
लोभी , क्रोधी ,ढोंगी मानव खोखा है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)