“लोग क्या कहेंगे?”
ऋषि एक रेस्टोरेंट में एंटर होता है?
फ्रेंड्स : ओह! ऋषि तुम आ गए। हमे लगा कि तुम नही आओगे।
ऋषि : मम्मी से बहाना बना कर आया हूं। उन्हें पता चला कि मैं हुक्का बार में हूं तो..
तुषार : कम ऑन। इसमें डरने की कोई बात नही है।
करण : राइट। यह एल्कहॉल या सिगरेट थोड़े ही है? दिस इज़ हार्मलेस हुक्का।
विवेक : अरे यार, एक पफ ट्राई करो। यह रोज़ फ्लेवर हुक्का है। मज़ा आएगा।
ऋषि (मन में) : अगर इस बार मना किया तो ये मुझे डरपोक का अवार्ड दे देंगे।
वह जैसे ही ट्राई करने जाता है तभी सोसाइटी के अंकल को वहा के मैनेजर के साथ बात करते हुए देख कर ऋषि अपना मुंह छुपाता है।
ऋषि : ओह! नो, विनोद अंकल यहां भी इंटीरियर करने आ गए?
तुषार : क्या हुआ ऋषि?
ऋषि : यार मैनेजर के साथ मेरे नेबर अंकल खड़े है। अगर मुझे देख लिया तो पूरी सोसाइटी को पता चल जायेगा।
करण : कम ऑन! इसमें क्या डरना?
(( ऋषि उलझन में है उसके मन में विरोधी विचार चल रहे है ))
ऋषि मन में : हां……. मैं कहा गलत कर रहा हूं।…… सिर्फ ट्राई करने से क्या बिगड़ जायेगा?…….
नही, नही.. एक तो घर पर झूठ बोलकर आया हूं.. और हुक्का तो.. मैं क्या करूं?
(( तभी ऋषि के फोन पर नोटिफिकेशन आता है। वह पड़कर ))
ऋषि मन में : ओह! थैंक गॉड।
ऋषि फ्रैंड्स से : सॉरी दोस्त! मुझे एक अर्जेंट काम आ गया है। जाना पड़ेगा।
(( ऋषि रेस्टोरेंट के बाहर निकलता है विनोद अंकल उसे बुलाते है। ))
विनोद अंकल : हेलो ऋषि बेटा! तुम यहां?
ऋषि : बस, जा रहा हूं।
विनोद अंकल मन में : इस लड़के को मैंने थोड़ी देर पहले ही आते हुए देखा.. ऐसे अचानक क्यों वापिस जा रहा है?
((विनोद अंकल अपने फोन का नोटिफिकेशन खोलते है। ))
Today’s Quote :
“जो डर गलत काम करने से रोकता है वो डर अच्छा है।”
विनोद अंकल (स्माइल के साथ) :
राइट टाइम पर राइट समझ मिली ऋषि को।
दोस्तो, “लोग क्या कहेंगे?” यह सोचने के बजाय अपने ध्येय के अनुसार चलना चाहिए। अर्थात ध्येय के विषय में लोगो का डर रखने जैसा नहीं है। लेकिन लोगो का यही डर हमे गलत काम करने से रोके तो?.. वह डर अच्छा है। वह डर लोक-लाज के आधार से ही सही लेकिन बदनामी हो ऐसे काम करने से बचाता है।