लोगों की मजबूरी नहीं समझ सकते
लोगों की मजबूरी नहीं समझ सकते
तो तुम इंसान नहीं….
जैसे शरीर हो कोई हट्ठा कट्ठा
और उसमें हो जान नहीं….
…. अजित कर्ण ✍️
लोगों की मजबूरी नहीं समझ सकते
तो तुम इंसान नहीं….
जैसे शरीर हो कोई हट्ठा कट्ठा
और उसमें हो जान नहीं….
…. अजित कर्ण ✍️