लोक पर्व
लोकभाषा/बोली :- खड़ी ठेठ भोजपुरी
#भूमिका :- मैं इस रचना के माध्यम से बिहार, उत्तर प्रदेश, नेपाल सीमा पर अवस्थित तराई क्षेत्र में मनाये जाने वाले लोक पर्वों का जिक्र अपनी खड़ी बोली ठेठ भोजपुरी में कर रहा हूँ।
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#रचना
बारह महिनवाँ में कई गो वरतिया, सुनऽ ये सखी।
कहतानी साँचे-साँचे बतिया, सुनऽ ये सखी।।
चइतऽ में घरे- घरे, आवें दुर्गा माई।
अछय तिरिया तऽ, बइसाख आई।
बनी खीर मिठे-मिठे, छत पे धराई।
चार बजे भोर में, ऊ जाके उतराई।
असही मनावल जाला-२ अछय तिरितिया, सुनऽ ये सखी। कहतानी……!!
जेठ -अषाढ़ में तऽ परब के सूखा।
शयनी एकादशी पे रहे लोग भूखा।
सावन में शिव- शिव नाम जपे सब।
भक्ति ब्रह्म जी के करेला तपे सब।
पूड़ी रसियाव बने-२ भरे सब थरिया, सुनऽ ये सखी। कहतानी…..!!
भाई घरे बहिनी तऽ राखी लेके जाली।
बाँध कलाई राखी तबिही ऊ खाली।
सावनी सोमार करे, नर हो भा नारी।
माने सब खुश होली उमा महतारी।
अन्न-धन भरल रहे-२ भरल बखरिया सुनऽ ये सखी। कहतानी……!!
भादो मास तीज, कृष्ण जन्म के सोहर।
कातिक में छठ माई, पूजे सब घर-घर।
बीचही कुआर माई दुर्गा सब मनावे।
गोबर से घर लीपि, माई के बोलावे।
कइसे भुलाईं हम-२ माई खर जीउतिया, सुऽ ये सखी। कहतानी——–!!
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#शब्दार्थ :- कई गो- बहुत, साँचे-साँचे – सही सही, बतिया- बात, अछय तिरितिया- अक्षय तृतीया, धराई- रखना, असही- ऐसे ही, रसीयाव – गुड़ से बना खीर, महतारी- माँ, बखरिया- बाँस द्वारा निर्मित धान रखने का बड़ा ड्रम, खर जीउतिया- ज्यूतपुत्रिका व्रत
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पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार