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29 Mar 2022 · 3 min read

लॉकडाउन से गृह कार्यों में दक्ष पतिदेव ( हास्य व्यंग्य )

लॉकडाउन से गृह कार्यों में दक्ष पतिदेव ( हास्य व्यंग्य )
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घरों के भीतर एक नई क्राँति हो रही है। आप इसे महसूस करिए। पुरुष वर्ग सोशल मीडिया पर स्वेच्छा से तथा उत्साह से भर कर गृह कार्यों में अपनी हिस्सेदारी तथा दक्षता का प्रदर्शन कर रहा है। भले ही कुछ लोग बताना न चाहें लेकिन कई लोगों ने खुलकर इस बारे में अपने योगदान को फोटो सहित समाज के सामने लाकर एक मिसाल पेश की है । आप जरा जायजा लीजिए। कोई दूध उबाल रहा है , कोई चाय बना रहा है , कोई रोटियाँ बेल रहा है , कोई पूरियाँ तल रहा है , कोई तवे पर रोटियाँ सेक रहा है। बहुत से लोग दाल पका रहे हैं । कुछ लोग स्वयं मिठाई बनाने का कार्य भी अपने हाथों से संपन्न करते हुए दिखाई दे रहे हैं ।
यद्यपि बर्तन माँजने के काम में पुरुष वर्ग अभी पीछे है लेकिन इक्का-दुक्का इस प्रकार के रुझान भी देखने में आ रहे हैं और यह बहुत उत्साहवर्धक हैं। झाड़ू लगाते हुए बड़े अच्छे चित्र आए हैं। पोछा लगाते हुए जो उत्साह पुरुषों के चेहरे पर देखने में आ रहा है ,वह प्रशंसा के योग्य है। स्त्रियाँ इस परिवर्तन को बहुत आशा के साथ देख रही हैं।
चारों तरफ से पुरुष वर्ग को प्रोत्साहन मिल रहा है । जैसे खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है , इसी तरह एक पुरुष को घर के कार्य करते हुए फेसबुक पर देखने के बाद दूसरा पुरुष कार्य करने के लिए प्रेरित होता है । अगर वह प्रेरित नहीं होता है तब पत्नी कहती है कि प्रिय ! तुम प्रेरित हो। देखो तुम्हारे साथ के फेसबुक फ्रेंड अपने घर पर कितना अच्छा कार्य कर रहे हैं और महिलाओं के कंधे से कंधा मिलाकर घर को साफ रखे हुए हैं । क्या तुम इतने निठल्ले, कामचोर और आलसी हो कि घर में एक झाड़ू और पोछा भी नहीं लगा सकते ?
पुरुष वर्ग चाहे जो भी हो लेकिन अपने ऊपर आलसी और कामचोर होने का ठप्पा नहीं लगा सकता। अब इस समय मुश्किल यह है कि दफ्तर और दुकानें बंद हैं। बाजार सूने हैं। किसी को घर से बाहर कोई काम नहीं है । ऐसे में कोई स्वयं को कर्मवीर अथवा कर्मठ सिद्ध करना चाहे तो कैसे सिद्ध करे ? सिवाय झाड़ू पकड़कर अथवा बर्तन माँजकर या रोटियाँ बेलकर ! कई लोगों ने अपने हाथ की बनी हुई सब्जियाँ तथा दाल के जायके को सबके सामने रखा है । उस पर उनकी पत्नियों के कमेंट भी आए हैं, जिसमें पतियों के हाथ से बनाए हुए खाने की भूरि- भूरि प्रशंसा की गई है।
इक्कीस दिन के बाद निश्चित रूप से परिदृश्य बदला हुआ होगा। बाजार भले ही खुल जाएँ, दफ्तर भले ही आरंभ हो जाएँ, लेकिन यह जो झाड़ू पोछा तथा रसोई के कार्यों में पुरुषों का योगदान आरंभ हो चुका है , वह रुकने वाला नहीं है ।
इक्कीस दिन के बाद पतियों की प्रशंसा का एक नया दौर आरंभ होगा और फेसबुक पर पत्नियाँ स्वयं फोटो डालेंगी कि देखो ! हमारे पतिदेव लॉकडाउन के बाद भी रसोई में सब्जी बना रहे हैं । देखिए ! बर्तन माँज रहे हैं । देखिए ! रोटियाँ बेल रहे हैं। देखिए ! झाड़ू और पोछा लगा रहे हैं। यह सब गर्व और गौरव की बातें होंगी और फिर जब बात स्त्री- पुरुष समानता की आ जाए तो इन सब चीजों से कौन पीछे भाग सकता है । फिर यह भी तो नहीं कहा जा सकता कि पुरुषों से गृह कार्य करना नहीं आता ? आखिर इक्कीस दिन तक आपने कुशलता पूर्वक गृह कार्य के दायित्व को बड़ी निष्ठा और सुचारू रूप से निभाया था । अब आप पीछे नहीं हट सकते हैं । अतः हे पतिदेव ! झाड़ू उठाओ। काम पर लग जाओ । तुम्हारा लॉकडाउन चालू है ।
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 545 1

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