लेयता नहीं, देयता !
सचमुच में, मैं जमींदार उसी को मानता हूँ, जिन्होंने अपनी जमीन का कुछ हिस्सा जीवनयापन के लिए रखकर शेष भूमि विद्यालय, महाविद्यालय, अस्पताल इत्यादि बनने के लिए दान कर दिए हों ! मैंने ऐसे लोगों को देखते आया है, जो धनी व पैसेवाले होने को लेकर डींगें हाँकते हैं, किन्तु जब आप मिलेंगे, तो वे आपको चाय तक के लिए पूछेंगे नहीं ! मैं धनी व पैसेवाले उसी को कहता हूँ, जो सप्ताह में कम से कम एकबार अभावी लोगों को भोजन कराएं और उन्हें आर्थिक मदद भी करें !
सच यह है, बड़ा आदमी से मतलब है, वो बड़प्पन दिखाए और अनुज-ज्ञानी को भी सम्मान दें ! ‘बड़घरिया’ से आशय है, वे आवासहीन लोगों को रहने के लिए भी घर बनाकर दें !
आप अच्छे कपड़े पहनते हैं, बीवी और बच्चों को भी महँगे कपड़े पहनाते हैं, महँगे होटलों में खाते हैं, सुरक्षा के लिए पिस्टल रखते हैं, बुलेट साइकिल, महँगे कार या विमान में चलते हैं, तो आप बड़े लोग हो गए, ऐसे-जैसे की सोच सिर्फ आप करते हैं ! मैं तो ऐसे लोगों को ‘गुंडा’ कहता हूँ ।
आपके चारों तरफ झुग्गी-झोपड़ी हो और आपकी एकमात्र अट्टालिका वहाँ अहम से खड़ी हो, यह बड़ाई-जैसी कोई बात नहीं है, अपितु इनसे आपके विद्रूप चेहरा बाहर आ रहे होते हैं, क्योंकि बाहर मजदूरों की भांति रह रहे लोगों के बीच आप मक्खन की चटनी कैसे खा सकते हैं? बड़े लोग वे हैं, जिनमें सेवापरायणता की भावना है; ‘लेयता’ नहीं, ‘देयता’ की भावना है ।
उनमें जरा भी अहंकार नहीं हो कि वे पैसेवाले व जमींदार हैं या उनकी संतान इंजीनियर, वैज्ञानिक, डॉक्टर, आईएएस अथवा ऊँचे ओहदे पर हैं ! क्या ऐसे बड़े लोगों से आपकी मुलाकात हुई है ? क्या ऐसे बड़े लोग आपके निकट हैं ? अगर नहीं है, तो कथित बड़े लोगों से आप दूर रहिये, वे आपके शुभचिंतक नहीं, शोषक हैं !