लेख –6
(1)
“सर्द रातें ।
हसीन शामें ।
जाड़ों की नर्म दोपहरे ।
और बारिश में भीगना।„
यही सब मुझसे भुलाया नहीं जाता ।
तुम्हारा मुझमें अब भी बहुत कुछ बाकी सा रह गया।
जो मुझसे लौटाया नहीं जाता ।
(2)
मन की दीवारें अब तंज नहीं कसती
और ना ही देती है पलट कर कोई जवाब ।
मन की दीवारों ने दफना दिया
सारी घुटन को खुद में ही ,
और हालातो पर मोन रहना सीख लिया ।
और सिख लिया निर्वाह करने का सलीका ।
मै कमज़ोर नहीं हुई बस अब थक गई हूं ।
(3)
खोल कर अपनी जुल्फों को तुम ,
हवाओं में लहराने दो ।
कदमों को रखो जमीं पर,
और ख्वाहिशों को आसमां में उड़ जाने दो ।
हवाओं से पूछ लो जरा, कहाँ तक बहेगी ये ।
जहां तक जा रही है ये,
तुम्हे भी अपने संग आज बहने दे ।
(4)
कितना सोचू में तुम्हें ,
और कब तलक गुनगुनाऊं ।
अजीब सा खुमार है ये ।।
बेहिसाब याद आती हो ,
लबों पर जैसे ठहर ही जाती हो ।