लेख
सच की आवाज को मिला रेमन मैग्सेसे सम्मान ;
ये अजीब बिलकुल नही, अप्रत्यासित भी नही इसे होना ही चाहिए था और हुआ भी।
बहुत खुशी कि बात है, इस से कमसे कम इतना तो जरूर होगा जो भी सच के पक्षधर हैं या सच बोलने लिखने की हिम्मत करते हैं उन्हें और बल मिलेगा। सच के साथ डटे रहने के लिए।
लेकिन इस ख़ुशी के मौके पे मैं, 2013 से 2018 के बीच मारे गए 19 पत्रकारों को भी नही भूल सकती, जिन्हें सिर्फ सच बोलने और लिखने के लिए मार दिया गया। उनका दोष बस इतना ही था कि उन्होंने पत्रकारिता को धर्म समझ कर पाला और अपनी पूरी निष्ठा लगा दी।
सिर्फ 2018 में 6 पत्रकार मारे गए और अन्य कई पत्रकारों पर जानलेवा हमले किये या कराये गए।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरों के आंकड़ों मुताबिक साल 2015 से लेकर अब तक करीब 142 पत्रकार हमलों का शिकार हो चुके हैं
आज जब दुनिया में ‘रवीश’ जी को नॉबेल से नवाजा जा रहा है तो ऐसे में आज के दिन मुझे उन सब की ज्यादा ही याद आरही है।
और 2019 के आम चुनाव के बाद जो प्रत्रकार और सच लिखने बोलने बाले थे जिसमे ‘रवीश’ जी भी शामिल हैं उन्हें कैसे भूल जाऊँ कि उनकी गालियों और धमकियों से कितनी खातिर तबज्जो की गई…
बेहद दुबिधा में हूँ ‘रवीश’ जी के लिए खुश होऊं या उन मारे गए 19 पत्रकारों के लिए शोक मनाऊं … मुझे कुछ समझ ही नही आरहा किस से कहूँ ये बातें वो भी नही समझ पा रही…
खैर छोड़िये ये बातें अभी फिलहाल ‘रवीश’ जी के लिए खुश ही हो जाते हैं।
बधाई-बधाई-बधाई
…सिद्धार्थ