लेख :– मेरे कम्पनी की बस !!
लेख :– मेरे कम्पनी की बस !!
रचनाकार :– अनुज तिवारी “इन्दवार”
दोस्तो आज की इस व्यस्ततम जीवन शैली में “परेशानी और तनाव ” इंसान के उपनाम से हो गये हैं ! कोई कितना भी कोशिश करे मगर इसमें उलझा ही मिलेगा !
एक तो महँगाई ऊपर से आधुनिक ज़माने के फैशन और चाल-चलन नें तो इंसान की कमर तोड़ दी है !
व्यस्तता ऐसी की सुबह उठना और जल्दी से तैयार हो कर ऑफिस के लिये निकलना …..इतनी जल्दबाजी तो कभी इम्तिहान के समय भी नहीं की थी , खैर …….!
इस दौरान नहाने फ्रेश होने और नाश्ता करने का समय भी निर्धारित होता है , अच्छे से नहाने का ख़याल भी आया तो ना बाबा ना ………वरना नाश्ता दौड़ते हुए ही करना पड़ेगा या खाली पेट ही जाना पड़ेगा …!
बीबी की झिक -झिक ……….
बच्चों की खट -पिट ………….
और ऑफिस में
बॉस की किच -किच ………..
सुन कर मुझे मुझे अपना एक शेर याद आता है ;
” मेरे इस जीवन में जानें !
किसने आग लगा दी है !! ”
इस दौरान मैंने देखा की हम अपने ऑफिस में अपने ही बगल में काम कर रहे अपने साथ के कर्मचारियों से उनका हाल चाल भी नहीं पूँछ पाते हैं !
बस हमारी जान-पहचान हाय हैलो तक ही सीमित रहती है , कभी – कभी तो ऐसा भी होता है की हमें एक दूसरे का नाम लेने के समय भी सोच कर के लेना पड़ता है की उसका वही नाम है या फ़िर कुछ और …..!!
शाम को घर जाते हैं तो बीबी भी डरी सहमी सी ……पानी का ग्लास लेकर आती है ; और टेबल पर रख कर कहती ………एजी पानी !
जैसे कोई प्रताड़ित करके ग्लास लेकर भेजा हो ……पर वो करती भी तो क्या ……..काम की थकान और बॉस का गुस्सा सब घर में ही तो निकलता है …..बच्चे भी डरे सहमें से चुपचाप अपने कमरे में किताब खोल कर बैठ जाते हैं !!
इस व्यस्ततम और तनाव भरे जीवन के बीच हमारे खुशियों के वजूद को जिंदा किये हुए मुझे मेरे कंपनी की बस याद आती है ! सुबह बस अड्डे पर बस के इंतजार में टपरे में चाय पीना और दोस्तों के साथ खींचातानी करना ………
बस में मस्ती भरी बातें करना ..
एक दूसरे को चिड़ाना ……….!!
सब लोग साथ में ऑफिस पहुँचते …
और शाम को वापसी के समय तो बस ऐसा लगता की कारावास से रिहाई के बाद की खुली हवा मिली हो !
सुबह ऑफिस जानें के समय ..
अभी ये करना होगा ….
अभी वो करना होगा ……
बॉस ऐसा बोलेगा …….
बॉस क्या बोलेगा ……
तमाम खयालात जहन में बिना इजाजत ही दस्तक देते हैं !
पर घर वापसी के समय पूरी मस्ती ……और लड़कपन के साथ सभी तनाव मुक्त होकर ………
बस एक ही बात बोलते हुए की
चलो आज का दिन अच्छा गया …अब कल का कल देखा जायेगा !!
मुझे तो ऐसा लगता है की ये बस हमारे बचपन के कुछ खूबसूरत यादगार पलों को भी याद करने में मजबूत कर देती है ……….!
कभी कभी तो मुझे ये सोच कर डर भी लगता है की अगर कम्पनी ये बस बन्द कर दी तो क्या होगा ????
जैसे बच्चों से बचपना छिन जायेगा !
सब अपने अपने निजी साधन से ऑफिस आयेंगे ….और काम ख़त्म करके घर जाएँगे …..!!
केवल ;
घर से ऑफिस
ऑफिस से घर
इसी में जिंदगी कट जाएगी !
ये सब बातें सोच कर ही दिल सहम सा उठता है ….और कहता है
” वाह मेरे कम्पनी की बस …..तू ही हमारे मेल मिलाप का एक जरिया है ! तू कभी बन्द मत पड़ना ! तू कभी बन्द मत पड़ना !!”
अनुज तिवारी “इन्दवार”