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19 Dec 2017 · 1 min read

लेख उल्लेख करते हैं,

आज फिर वही हुआ,
जिसका डर था,
हजारों साल पहले,
जब इंसान बेखबर था,
तब कम से कम काफी समय बेखबर था,
सुखी था,बेचैन नहीं था,
.
आज की तरह उतावला नहीं था,
आज घटना के घटने से पहले,
और समाप्ति के बाद अव्यवस्थित है,
अधिक अधीर,अधिक बेचैन,
कर कुछ नहीं सकता,
सिवाय अफसोस,
.
करना सिर्फ मौजूद लोगों ने है,
कल भी किया,
आज अभी भी कर रहे है,
आगे भी करेंगें,
.
मानवता का पागलपन,
न आज तक मिट पाया,
न आगे ही मिटता नजर आ रहा है,
.
मौका प्रबल है,
प्रबल क्यों न हो,
निर्णय लेने पड़ते है,
हर किसी के बस की बात नहीं,
मरने को मर जाते है,
.
ये ताकत,विश्वास,
तर्कशीलता सबमें नहीं आती,
सांप तो हर बार निकल जाता है,
लोग लकीरें पिटते देखें जाते है,
.
महेंद्र

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 1 Comment · 282 Views
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