लेख उल्लेख करते हैं,
आज फिर वही हुआ,
जिसका डर था,
हजारों साल पहले,
जब इंसान बेखबर था,
तब कम से कम काफी समय बेखबर था,
सुखी था,बेचैन नहीं था,
.
आज की तरह उतावला नहीं था,
आज घटना के घटने से पहले,
और समाप्ति के बाद अव्यवस्थित है,
अधिक अधीर,अधिक बेचैन,
कर कुछ नहीं सकता,
सिवाय अफसोस,
.
करना सिर्फ मौजूद लोगों ने है,
कल भी किया,
आज अभी भी कर रहे है,
आगे भी करेंगें,
.
मानवता का पागलपन,
न आज तक मिट पाया,
न आगे ही मिटता नजर आ रहा है,
.
मौका प्रबल है,
प्रबल क्यों न हो,
निर्णय लेने पड़ते है,
हर किसी के बस की बात नहीं,
मरने को मर जाते है,
.
ये ताकत,विश्वास,
तर्कशीलता सबमें नहीं आती,
सांप तो हर बार निकल जाता है,
लोग लकीरें पिटते देखें जाते है,
.
महेंद्र