लेखनी चलती रही
शैशवी मन के पुलक की कल्पना लिखती रही।
धर मृदुल-पग ज़िन्दगी, प्रस्तावना लिखती रही।।
हो वसंती-सा गया मन, नववधू-सी वेदना,
कल्पना मधुयामिनी की कामना लिखती रही।
भावना ने प्रेम-पूरित छंद-लय सब रच दिया,
दिव्यता अभिव्यक्त हो कर, साधना लिखती रही ।।
रूपसी बन प्रेम-बेला, हो रही श्रृंगार-रत,
हो समर्पित कामिनी, आराधना लिखती रही।
कर दिया अवरुद्ध जीवन-पथ अकथ संभाव्य ने,
आयु विचलित रह, नई संभावना लिखती रही।।
रश्मि लहर