लेखनी का सफर
कुछ कर गुजरने का जुनून
दोस्तों ये बात तब की है,जब में इस बेरंग दुनिया की उलझनों में कहीं खोया हुआ था,अपनी विशिष्ट पहचान बनाने के सपने के साथ दुनियां की ज़द्दोजहद़ में खोया हुआ था, हमेशा एक ही बात दिमाग में आती थी और सोचता था कि हर आदमी अपनी असली जिंदगी में हीरो है, बस सबकी फिल्म ही रिलीज नहीं होती, सिर्फ एक चाहत हमेशा से दिल के कोने में रहती थी कुछ कर दिखाने का, जोश, जुनून और जज्बा था एक अपनी खुद़ की पहचान बनाने का। पता नही कब, कहाँ, कैसे और कौन से वक्त शब्दों से खेलने का खुमार चढा, जिसमें आप सब जैसे दोस्तों ने साथ दिया, और हौसला भी बुलंद किया, उन बुलंद हौसलों ने मेरी कलम और शब्दों में इतनी ताकत भरी, कि ये जुनून सा बनने लगा, अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाने का। सपने संजोए कुछ अरमान मेरे मचलने लगे। बस एक ही बात दिल को हर वक्त सुनाई देती थी कि कोई नामुमकिन सी बात को तू मुमकिन तो करके दिखा, खुद पहचान लेगा जमाना, तू भीड़ में अलग चलकर तो दिखा। फिर मेरे एक अजीज दोस्त ने कहा, कि हौसलें बुलंद कर रास्तों पर चल दे, तुझे तेरा मुकाम मिल जायेगा, बढ कर अकेला तू पहल कर, देख कर तुझको काफिला खुद ब खुद बन जायेगा।
तू हिम्मत तो जुटा, बस हमेशा यही बात याद आती कि जो सफर की शुरुआत करते हैं वो मंजिल पा ही लेते हैं। बस एक पत्थर तो फेंको यार, बस तभी मेरी अंतरआत्मा एक ज्वलंत तीब्र इच्छा के साथ बार बार यह एहसास दिला रही थी कि अपने इस सपने में इतनी आग भर दो कि ये आग हमेशा आपको अपने लक्ष्य को पाने के लिए जलाती रहे। क्योंकि में जानता था कि दुनिया में एक इंसान की सबसे शक्तिशाली ताकत उसकी अपनी ज्वलंत अंतरात्मा है, जो उसको प्रेरित करती रहती है, ये वादा रहा दोस्तो, इन शब्दों को ऐसे पंख लगाऊंगा कि एक अलग ही इतिहास रचाऊंगा। कलम की दुनियां में एक ऐसा नाम बनाऊंगा, कि किताबों के शब्द-कोष में एक विशेष मुकाम बनाऊंगा।
सुनील माहेश्वरी