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8 Sep 2023 · 1 min read

#लेखकीय धर्म

★ #लेखकीय धर्म ★

अर्थ खो गए कहीं शब्दों की भीड में
जुगनू से आग लग गई सूरज के नीड में

सत्ता की देहरी यों उगीं हठधर्मी की ठोकरें
अश्रु स्वेद संग मिले धरती की सीड में

देवदारु की चोटियां बतियातीं आकाश से
हरितकरैत-विषगंध आन बसी है चीड में

रीत चुके बादलों-सा अपनों का अपनापन
तनिक भेद रहा नहीं हास में और पीड में

समय के भाल खिल रही प्रसव की वेदना
सत्य सुभाषित होगा पुनः आर्य द्रविड में

हरि हृदय आन बसे मैं गया कहां
आसनिरास एक हुईं जगतीक्रीड में

जात गोत मत पूछो न ही मेरा नाम
लेखकीयधर्म ओढ लिया मैंने तनपीढ में

#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२

Language: Hindi
82 Views
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