लेकिन वतन तू जिन्दाबाद रहे
मैं ना रहूँ मुझको कुछ गम नहीं, लेकिन वतन तू जिन्दाबाद रहें।
जी लूँगा मैं तो अभावों में रहकर, हे मेरे वतन तू आबाद रहें।।
मैं ना रहूँ मुझको यह गम नहीं——————।।
मिलकर रहें तेरी इस जमीं पर, हिंदू- मुस्लिम- सिक्ख- ईसाई।
मिट जायें तेरे दुश्मन वह जो, बहाते हैं खूं इसमें करके लड़ाई।।
जिन्दा रहें इनका सदा भाईचारा, ऊँचा हमेशा तेरा ताज रहें।
मैं ना रहूँ मुझको यह गम नहीं—————-।।
बहती रहे धारा प्रेम की, यहाँ गीता- रामायण के ज्ञान की।
दीप खुशी के हर घर में जलें, रक्षा हो तेरी आन- शान की।।
मुकम्मल तेरा हर ख्वाब हो, हमेशा तेरा यहाँ राज रहे।
मैं ना रहूँ मुझको यह गम नहीं—————-।।
मेरी आरजू तू मेरा ख्वाब है, मेरे वतन तू मेरी जिंदगी है।
महकती रहे तेरी यह फिजां, रब से यही मेरी बन्दगी है।।
लहराता रहे सदा यह तिरंगा, हे मेरे वतन तू आजाद रहे।
मैं ना रहूँ मुझको यह गम नहीं—————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)