लुट गया है मक़ान किश्तों में।
लुट गया है मक़ान किश्तों में।
फंस गई मेरी जान किश्तों में।
है नवाज़िश तेरी ही शायद,जो
चल रही है दुकान किश्तों में।
दस्तख़त ले लिए जो मुंसिफ ने,
रोज़ रहता है ध्यान किश्तों में।
दर्द, आंसू, तड़प, घुटन सब ये,
हो चले हैं जवान किश्तों में।
झूठ की बेड़ियाँ पड़ीं हों जब,
लड़खड़ाती ज़बान किशतों में।
एक ही तो गवाह था वो बस,
कर दिया बे-ज़बान किश्तों में।
क्या जला क्या बचा न पूछो अब,
ख़त्म होता गुमान किश्तों में।
ऐ खुदा सुन मेरी गुज़ारिश भी,
यूँ न ले इम्तिहान किश्तों में।
क्या बिगाड़ा था इस “परिंदे” ने,
लूट ली जो उड़ान किश्तों में।
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊