लुटेरों का सरदार
लुटेरों का सरदार
समाज में हर जाति संप्रदाय के लोग रहते हैं। कुछ प्रभुता संपन्न कुछ प्रभुता हीन विपिन्न। प्रभुता नेतृत्व क्षमता का गुण है ।नेतृत्व क्षमता सबके बस की बात नहीं । प्रभुता के अनेक प्रकार हैं। धनाढ्य ,प्रबुद्ध साहित्यकार , खेल जगत के नायक और अपराध जगत के कुख्यात नायक , वैज्ञानिक सब का उद्देश्य एक है, समाज में प्रमुखता से भागीदारी करना और अपनी प्रभाव के हिसाब से समाज में बंदरबांट करना।
समाज में अपराधी यूं ही नहीं पनपते ,उन्हें बाकायदा संरक्षण व ट्रेनिंग दी जाती है।यह उनकी क्षमता और कार्यकुशलता पर निर्भर करता है कि वह कितनी कुख्यात अपराधी बन सकते हैं।
निहाल सिंह एक लुटेरा है। निहाल सिंह का विशाल परिवार है, चार भाई और चार बहन एवं माता पिता सब मिलाकर दस का परिवार है। आजीविका का साधन कृषि योग्य दस एकड़ भूमि है, जो उनके परिवार का भरण पोषण करती है ।निहाल सिंह का मन पढ़ने में कतई नहीं लगता । कुश्ती ,दंगल उसके अभिनव शौक हैं। जिसमें उसे वर्चस्व हासिल है। निहाल अपने भाई बहनों में सबसे बड़ा है ।
जब निहाल सिंह वयस्क हुआ ,उसका विवाह कुसुम नामक कन्या से तय हुआ ,और शुभ मुहूर्त में उसका शुभ विवाह संपन्न हुआ। घर में नई नवेली बहू ने कदम रखा।
” घर की बहू पर निर्भर करता है कि वह घर को स्वर्ग बना दे या नर्क बना दे।”
कुछ दिनों तक हंँसी -ठिठोली में ननंद भौजाई मस्त रहे। अंत में उनका स्वार्थ आड़े आने लगा ,ननदों को लगा कि भाभी उनके हक पर डाका डाल रही है । भाभी की मीठी -मीठी बातों पर उन्हें शक होने लगा। कहीं वह मीठी- मीठी बातों से भैया को फुसलाकर निहाल को परिवार से अलग ना कर दे। बातों- बातों में कानाफूसी ,एक दूसरे के कान भरने का दौर शुरू हो गया। चारों बहनों और भाभी के बीच दुराव- छुपाओ का व्यवहार हो गया।ननदों ने माता-पिता के कान भरने शुरू कर दिए। उधर अपने को अकेला पाकर कुसुम ने निहाल से सब बातें बतायी। घर में नित्य कलह होने लगी।
अतः निहाल ने परिवार को भगवान भरोसे छोड़ कर अकेले शहर जाने का निश्चय किया। और ,अपने निर्णय से सबको अवगत करा दिया। अब सबको सांँप सूंघ गया। कुसुम का रो- रो कर बुरा हाल है, किंतु उसकी सुनने वाला कोई नहीं है।निहाल ने चलते समय केवल इतना कहा कि वह वहां पर व्यवस्थित होते ही उसे अपने साथ शहर ले जाएगा ,यही आशा की किरण जो निहाल जगा गया था। जो,कुसुम के जीने का आधार है।
निहाल ने गांव के रेलवे स्टेशन से रेलवे का टिकट क्रय किया और गाजियाबाद पहुंचा। जेब में कुछ पैसे माँ ने उसे चलते समय दिए हैं जिससे उसने अपनी क्षुधा पूर्ति की ,और चौराहे पर सभी मजदूरों के साथ दिहाड़ी का इंतजार करने लगा ।रहने की व्यवस्था उसने नहीं की है ,सोचा किसी फुटपाथ पर रात गुजार लूंगा।
अचानक उसके सामने एक ट्राली आकर रुकी, उसमें से ठेकेदार निकला ।उसने कद काठी देखकर अनेक मजदूरों का चयन किया। उन मजदूरों में निहाल सिंह भी है।
उन मजदूरों का ट्राली में बैठे-बैठे सभी से परिचय हो गया। वह संख्या में चार हैं।उनमें से एक आलम है वह अपने आपको राजेश खन्ना बताता है। वह रंगीन मिजाज है। अक्सर वह फिल्मों की बातें करता रहता, अपराध से जुड़ी खबरें उसे बड़ी रोचक लगती। वह कहीं दूर बिहार का रहने वाला है। उसका साथी अजीज भी बिहार का रहने वाला है। दोनों रोजी-रोटी की तलाश में गाजियाबाद आये हैं।अजीज की आंखों में गजब की चपलता है ।बैठे-बैठे उसने सब का हाल-चाल जान लिया। किंतु बोला कुछ भी नहीं ।सबके लिए वह रहस्यमय व्यक्तित्व है । दिनेश गाजीपुर का रहने वाला है और भोजपुरी पर उसका अधिकार है। उसे खाने पीने का शौक है, और घूमने-फिरने का भी। सभी मित्र परिचय पाकर अत्यंत प्रसन्न हैं।
ट्राली एक हवेली के सामने रुकती है। उसमें निर्माण कार्य होना है। ठेकेदार, मालिक से सबको मिलवाता है। मालिक सबको अपना-अपना काम समझाता है ।उन्हें वहां से दो मिस्त्री मिलते हैं जिनके निर्देश पर उन्हें काम करना है। मालिक के वहां से जाते ही सब अपने अपने कामों में लग जाते हैं।
कोई मसाला तैयार कर रहा है ,कोई मौरम छान रहा है और कोई ईटों को ढो रहा है। अपरान्ह दो बजे उष्ण धूप में भोजन का अवकाश होता है ।सभी मजदूर निकट के भोजनालय में भोजन करते हैं ,कुछ देर आराम करते हैं।
कड़ी मेहनत मजदूरी के पश्चात शाम 5:00 बजे काम बंद होता है। सब हवेली के प्रांगण में मालिक के आने का इंतजार करते हैं। मालिक ने सबको दिहाड़ी में तीन सौ पचास रु दिए हैं। सब मजदूर निहाल सहित अपने गंतव्य को प्रस्थान करते हैं।
निहाल सिंह स्टेशन के निकट फुटपाथ पर डेरा जमाता है। कुछ अन्य मजदूर जो उसके साथ दिन भर मजदूरी कर रहे हैं, वह भी आसपास अपना बिस्तर बिछाते हैं।सब देर रात तक गपशप करते रहते हैं। जैसे -जैसे समय बीत रहा है मजदूरों में वैसे- वैसे घनिष्ठता बढ़ती जा रही है ।उनकी सुसुप्त इच्छाएं जागृत हो रही हैं।
कोई सिनेमा देखना चाहता है । कोई शराब के नशे में चूर होकर मस्त होना चाहता है। कुछ को गाड़ियों का शौक है। कुछ रेड लाइट एरिया का चक्कर लगा रहे हैं ।
धीरे-धीरे अपराधी कुंडली का निर्माण हो रहा है। रोज योजना बनती है। किन्तु पुलिस की मार के डर से धरी की धरी रह जाती है। अंततःआलम एक पुलिस वाले से मित्रता करने में सफल हो जाता है।अजीज शहर के मशहूर क्रिमिनल वकील से परिचय प्राप्त कर लेता है।उसने दो -तीन वकीलों की लिष्ट तैयार की है,जो जरूरत के समय खड़े हो सकते हैं।दो मोटर बाइक की व्यवस्था की जाती है।अब चारों मिल कर सर्व सम्मति से निहाल को अपना सरगना चुनते हैं।
अब आलम और अजीज एक अपराध करने की योजना बनाते हैं।निहाल की सहमति से घटना कारित करते हैं।
अमावस्या की घुप अंधेरी रात है।जेष्ठ की गरमी से माथे की नसें तड़क रहीं हैं।चुनाव सर पर हैं।राजनीति करवट बदल रही है।कानून व्यवस्था लचर है।अपराधियों के हौसले चरम पर हैं।उत्तर प्रदेश अपराधियों के लिये स्वर्ग के समान है।यात्रियों का रात्रि में निकलना दूभर है।ऐसे समय जब दुर्भाग्य का मारा कोई व्यापारी विवश होकर रात्रि में निकलता है ,तो, ये अपराधी कहर बनकर उस पर टूट पड़ते हैं। इसी माहौल का लाभ उठा कर चारों साथियों ने बाइक से अपराध करना चाहा। उन्होंने व्यापारी की कार को हाइवे पर रुकने हेतु विवश किया।व्यापारी ने जैसे कार रोकी आलम व अजीज ने व्यापारी के कान पर तमंचा रख दिया,और जोर देकर कहा अपना सभी कीमती सामान हमारे हवाले कर दो,वरना जान से हाथ धो बैठोगे। विवश होकर व्यापारी ने समस्त आभूषण व नगदी उनके हवाले कर दिया।तब उसकी जान बची।
चारों ने नकाब पहना था।
चारों लुटेरे सुरक्षित एक बाग में पहुँचते हैं।उन्हें लूट का सामान बाँट कर अलग अलग राह पकड़नी है।सरदार निहाल सिंह ने लूट का सारा माल बराबर चार हिस्सों में बाँटा।उसके बाद चारों हिस्सों में से पाँचवा भाग वकीलो की फीस व पुलिस को घूस देने हेतु अलग किया।
एक भाग न्यायालय के खर्च हेतु निकाला गया। इसके बाद भी उनके हिस्से में काफी माल आ गया।
उधर व्यापारी ने निकट थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी।किन्तु राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में पुलिस ने कुछ नहीं किया।
समय परिवर्तन शील है।चुनाव के बाद दृढ संकल्प और राजनीतिक इच्छाशक्ति की सरकार ने कार्यभार ग्रहण किया।कानून के पेंच कसे गये।कानून व्यवस्था दुरुस्त है।इसी समय व्यापारी ने अपनी व्यथा पुलिस अधीक्षक के सम्मुख रखी।पुलिस अधीक्षक ने तत्काल कार्रवाई के आदेश दिए।
चारों लुटेरों के हौसले बुलंद हैं।वे अपराध पर अपराध करते जा रहे हैं।उनकी भनक पुलिस महकमे तक पहुँच चुकी है।कप्तान के आदेश पर नाकाबंदी की गयी,और अपराधियों को ढूंढ ढूंढ कर गिरफ्तार किया जाने लगा।इसी क्रम में एक मुठभेड़ में वे चारों गिरफ्तार हुये।
लुटेरों के सरदार ने अपने पुलिस मित्र व वकीलों से दूरभाष पर संम्पर्क किया।और उनसे मदद माँगी।किन्तु पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया।
उ. प्र .सरकार सख्त है।सामाजिक न्याय व्यवस्था दुरुस्त है।कानून के हाथ लम्बे और मजबूत हैं।अपराधियों का बच निकलना असंभव है।
निहाल व उसके साथियों को एक मुकदमे में जमानत होती तो दूसरे अपराध की फाइल खुल जाती।
निहाल व उसके साथी सात वर्ष तक कारागार में रहकर जब ग्राम वापस पहुँचे तो वे अपराध जगत से नाता तोड़ चुके हैं।आलम कुशल बढ़ई, अजीज कुशल चित्रकार और निहाल कृषक बन गये हैं।दिनेश कारीगर बन गया है। वे अपना अपना परिवार चलाने में व्यस्त हो गये।
कुसुम अपने पति को वापस पाकर अत्यंत खुश है।उसके सभी देवरों व ननदों का विवाह हो गया है।वे सब कृषि में व्यस्त हैं,और आनंद से रहने लगते हैं।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम