लिफ़ाफ़ा
लिफ़ाफ़ा देख कर ही पल्लू में छुपा लिया था
सच कहना लिखाई पहचान गई थीं ना
कोसता रहा ताउम्र अपने ख़ज़ाने को
आग लगी, तो राख देखकर जाना
कितना कुछ था मेरे पास भी।
दिवारें भी नहीं सुनती अब मेरी कहानी
कौन कहता है उनके भी कान होते हैं ।
समय अक्सर शिकायत करता है कि तुम बदल गए
और हमें शिकायत है कि मेरा समय नहीं बदलता ।
नींदों पर हमारी इन दिनों उनका पहरा है
वरना ऑंखें मूँदें और हमें नींद ना आए।
बोझिल ऑंखों को क्या ख़बर
यह पलकों पर भार कैसा है ।
कोई तिजोरी से उनकी तस्वीर चुरा ले गया
वरना गहने तो हमने खुले ही रख छोड़े थे।