लिखें कहानी
आओ मिलकर लिखें कहानी, तेरी मेरी नयी पुरानी
कुछ टूटे सपनों को जोड़ें लेकर इन आँखों का पानी
जाने कितने युग बीते पर मन का ताल कहाँ सूखा है
तुम हो तो कैसे मैं कह दूँ पतझड़ का मौसम रूखा है
फिर खोलें यादों की पेटी,निकले फिर वह शाम सुहानी
आओ मिलकर लिखें…………
चन्दन-वन में चलती फिरती विष बेलों के कुछ साये थे
तुमने भी कुछ कहा नहीं था, हम भी कहाँ समझ पाये थे
नयनों की भाषा में कर लें बातें वह जानी-अनजानी
आओ मिलकर लिखें……………
सम्बन्धों की मर्यादा का मान कहाँ जग रख पाया है
परिभाषाओं के मनमाने अर्थों में ही उलझाया है
इन अर्थों को आओ दे दें नया कलेवर नयी निशानी
आओ मिलकर लिखें………….
अरमानों के राजमहल का सिंहासन था खाली खाली
तुम आये तो रात अमावस लेकर आई है दीवाली
इन होठों से फूट पड़ी है फिर से वही प्रीत की बानी
आओ मिलकर लिखें……………
जब जब यह इतिहास लिखेगा प्रेमग्रंथ की अमर कथाएं
महफ़िल महफ़िल होंगी अपनी रामकहानी की चर्चाएं
तेरा बस तेरा ‘असीम’ है दुनिया रहे भले दीवानी
आओ मिलकर लिखें……………
© शैलेन्द्र ‘असीम’