लिखा आँसुओं पर विधना ने…
लिखा आँसुओं पर विधना ने,
जन्मसिद्ध अधिकार हमारा।।
टंकित नाम हमारा केवल,
कर्तव्यों के पृष्ठों पर ही !
पीड़ाओं के अभिलेखों पर,
संत्रासों पर कष्टों पर ही !
हमनें जब भी खुद को देखा,
देखा केवल लुप्त नदी सा!
बिंदु में अस्तित्व समाहित,
जहाँ धार है वहीं किनारा।।
हमनें स्वेद बहाया तब जा,
इस दुनिया को मिले निवाले!
जुगनू सा कद अपना लेकिन,
दिये जगत को नित्य उजाले !
हमने सूरज चाँद बनाकर,
आसमान में किये स्थापित!
अपने घर के आँगन में पर,
हुआ न मुट्ठी भर उजियारा !!
वर्तमान को जी भर घोटा,
मगर भविष्य नहीं बन पाया !
ज्वार बाजरा धान उगाकर,
प्यासा मन भूखा तन पाया !
मजबूरी की दीवारों पर,
चिपके रहे पोस्टर बनकर!
जिसने चाहा उसने फाड़ा,
जिसनें चाहा कीचड़ मारा!!
प्रदीप कुमार “दीप”