लिखती है तब ही कोई नज़्म शायरा
लिखती है तब ही कोई नज़्म शायरा
खाती है गहरा जब ज़ख्म शायरा
मीठी सी धुन में जज़्बात कहे अपने
समझती ज़िंदगी को इक बज़्म शायरा
–सुरेश सांगवान’सरु’
लिखती है तब ही कोई नज़्म शायरा
खाती है गहरा जब ज़ख्म शायरा
मीठी सी धुन में जज़्बात कहे अपने
समझती ज़िंदगी को इक बज़्म शायरा
–सुरेश सांगवान’सरु’