लाश देख आते सदा, बिना बुलाए गिद्ध।
राजनीति करने लगी, बात सही यह सिद्ध।
लाश देख आते सदा, बिना बुलाए गिद्ध।।
उलझे हैं हम आप सब, राजनीति में आज।
और प्रतीक्षा मौत की , करते गिद्ध समाज।।
घड़ियाली आंँसू बहे, अभिनय है हर ओर।
चोर, चोर को कह रहे, मिलकर सारे चोर।।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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