लावणी छंद आधारित मुक्तक
सुबह शाम सुतला जगला में, अँखिया में दिलदार रहल।
कुछऊ नाहीं नीमन लागे, बस ऊहे संसार रहल।
बाबूजी के खबर भइल तऽ, पीठी पर पैना टूटल-
फिर भी दिल में जिंदा हरपल, धड़कन बन के यार रहल।
सबसे ऊंँचा रही तिरंगा, जय-जय आठो-याम रही।
गंगा-यमुना भागिरथी में, नीर बहत अविराम रही।
आँख दिखाई जब-जब दुश्मन, आँख निकाल लिहल छाई-
जबतक सागर रही हिमालय, हिन्द देश के नाम रही।
वीरभूमि भारत के जननी, वीर पूत जनमावे ली।
माई माटी की रक्षा में, सीस दिहल सिखलावे ली।
रोवे बबुआ जब राती में, ठपकी की साथे-साथे-
भगत सुभाष क कथा सुनावें, लोरी नाहीं गावे ली।
भारत की गौरव गाथा के, सुंदर लिखल कहानी बा।
राणा की भाला के आगे, अकबर माँगत पानी बा।
पीठी पर बबुआ के बन्हली, हाथे में तलवार रहे-
भारत के ऊ वीर शेरनी , झांसी वाली रानी बा।
सियाचीन गलवान कारगिल, हर मोर्चा पर हार भइल।
भारत की ताकत के आगे , दुश्मन सब लाचार भइल।
कायर छुप के घात लगावे, चीन और पाकिस्तानी-
जब-जब रणभेरी बाजल हऽ, भारत के जयकार भइल।
सांवा, तांगुन, बजरा, बजरी, तीसी, जौ, केराय गइल।
लहसुन मरिचा की चटनी सह, भाजि भात सेराय गइल।
आपस में मतभेद बढ़ल हऽ, अँगना में बखरा लागल-
दादा-दादी, चाचा-चाची, रिश्ता सजि हेराय गइल।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
☎️7379598464