लाल दास कृत मिथिला रामायण मे सीता।
लाल दास कृत मिथिला रामायण मे सीता।
-आचार्य रामानंद मंडल।
मिथिला रामायण के रचयिता कवि श्रेष्ठ लालदास के अवतरण सन् 1263 साल (1856ई) में मधुवनी जिला अन्तर्गत खड़ौआ गाम के कायस्थ वंशी बचकन दास के पुत्र रत्न के रूप मे भेल रहय। अत्यंत धार्मिक पिता आ माता के प्रभाव लालदास पर पड़लैन।वो रमेश्वर चरित मिथिला रामायण के रच के अमर हो गेलन।
हिनकर रचल रामायण महर्षि बाल्मीकि कृत रामायण, संत तुलसीदास रचित रामचरितमानस आ कविवर चंदा झा कृत मिथिला भाषा रामायण से अलग विशेषता धारण करैत हय।
बाल्मीकि रामायण के सीता –
सीते यथा त्वां वक्ष्यामि तथा कार्यं त्वयाबले।
वने दोषा हि बहवो वसतस्तान् निबोध मे।।४।।
अर्थात हे सीता!हम अंहा के जेना कहय छी,ओहिना करनाई अंहा के धर्म हय। अंहा अबला छी,वन मे रहे वाला मनुष्य के बहुत दोष प्राप्त होइ हय, ओकरा बता रहल छी,हमरा से सुनू।।४।।
संत तुलसीदास रचित रामचरितमानस मे सीता –
ब्याल कराल बिहग बन घोरा।निसिचर निकर नारि नर चोरा।।
डरपहिं धीर गहन सुधि आएं। मृगलोचनि तुम्ह भीरू सुभाएं।।
अर्थात वन मे सांप , भयानक चिड़ैय आ नारी-पुरुष के चुराबेवाला राछस के झुंड के झुंड रहय हय।वन के भंयकर रूप के केवल याद आवे से धीरज वाला पुरषो डर जाइ छै।फेर हे हरिण सन आंख वाली!अंहा त स्वभावे से डरपोक छी।
चंदा झा कृत मिथिला भाषा रामायण मे सीता –
रामचन्द्र कह कानन अति दुख, राक्षस लोकक त्रास।।११०।।
वचन सुनि जिव मोर ,थर -थर कांप
सर्वसहा जननी धरणी थिकि जनक नृपति थिक बाप।।११३।।
अर्थात सीता बजलैन -अहां के बचन सुनकर हम्मर करेज थर -थर कांप रहल हय।हम्मर माय धरती हय।जे हर संताप के सहेवाली कहल जाय हय आउर राजा जनक हमर बाप छतन।
परंच संत लालदास रचित रामायण मे जगत जननी सीता के पराशक्ति रूप देखायल गेल हय। वैष्णव आ शाक्त के समन्वय परिलक्षित होइ हय। विशेष रूप से रमेश्वर चरित मिथिला रामायण के विशेष अष्टम कांड पुष्कर मे सीता के पराशक्ति रूप के दर्शाएल गेल हय।
पहिले लालदास कृत रामायण के बालकांड अन्तर्गत प्रथम चौपाई मे लक्ष्मी के दस रूप के चर्चा कैल गेल हय। यथा -१.लक्ष्मी २.सीता ३. काली ४. तारा ५.त्रिपुरसुंदरी ६.भुवनेशी ७. भैरवि ८.छिन्नशिर ९.बगलामुख १०.मातंगी ।
माने लक्ष्मी के रूप सीता आ सीता के पराशक्ति रूप काली हय।
तेसर चौपाई मे सीता अर्थात स+ई+त+आ के चारि वर्ण से युक्त नाम के स से काम,ई से अर्थ,त से मोक्ष,आ से धर्म के लेल प्रभावकारी शक्तिमान बताएल गेल हय।
शक्तिमान जग शक्तिक योग। शक्ति -विमुख शव सन सभ लोग।
दोहा –
मूल प्रकृति लक्ष्मी जनिक , सीता रुप प्रधान।
तनिक नाम जपि पाब नर,दुहु लोकक कल्याण।।
संत लालदास अप्पन रामायण मे सात कांड के यथावत राखैत नया अष्टम पुष्कर कांड (जानकी चरित्र) के रचना कैलन।जैमे सीता के पराशक्ति रूप मे देखावे के लेल अद्भुत रामायण से आधार कथा लेलन। संक्षेप मे लंका विजय के बाद जौं राम अयोध्या अयलन त राज्याभिषेक पश्चात् ऋषि, मुनि लोक सभ रावण बध के लेल राम के पराक्रम के बखान करै लगलन।त सीता के हंसी आबि गेल। त राम के पूछला पर कि अंहा काहे हंसैत छी। सीता सहसानन रावण के बारे मे बतऐबत कहलन कि वोकरा बध करब त जानब।
ई रावण छल मृतक शरीर । मृतक मारि क्यों हो नहि वीर।।
बूझि पड़ल परिहास समान।तैं हंसलहु नहि कारण आन।।
जे जन जीवित रावण मार। तनिक कहक थिक यश विस्तार।।
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दशमुख रावण मृतक समान।कहक न थिक तकरा बलवान।।
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जौं सहसानन मारल जाय। त्रिभुवन सुयश अवश रह छाय।।
रावण केना छल मृतक शरीर तेकर विस्तार से सीता जानकारी देलन।
से सुनि कहलनि जनक कुमारि।सुनु मुनि कारण तकर विचारि।।
पूर्व रहय रावण बलवान। त्रिभुवन जीति बढ़ाओल मान।।
जखन हमर दृगगोचर पड़ल।तकर शक्ति सभटा हम हरल।।
तखनहिसौं भेल मृतक समान।रहल न तकरा बलक
विधान।।
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दोहा –
करितहुं तेहि खन दग्ध हम,दशकंधरक शरीर।
छल आगां कर्तव्य किछु,तैं छाड़ल मुनि धीर।।
चौपाई –
ताहुसौं पूर्वक वृतांत।कहियत छी सुनु हे मुनि शांत।।
पूर्वजन्म हम हिमगिरि देश।अवतरलहुं छल हेतु विशेश।।
कयल आंगिरस वेदाध्ययन।बहरयलहुं हम तेजक अयन।।
हमरा से पुनि मुनि तप धाम।पोशल वेदवती कहि नाम।।
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तदनन्तर पुनि विबुध समाज।मांगल कन्या परिहरि लाज।।
सभकां पिता निवारण कयल।तखन ततय दशकंधर अयल।।
मांगल कन्या कामक ग्रस्त।कयलनि तनिकहु पिता निरस्त।।
दोहा –
तखन कोप कय दुष्ट से,आयल निशि अंधियारि।
निद्रित रहथि पिता हमर,तनिका देलक मारि।।
चौपाई –
तखन दशानन हमरा निकट।आबि कहल खल वाणी विकट।।
धयलक हमर हाथ तत्काल।कयल तखन हम कोप कराल।।
चौदह युग छल आयु विशेष।से हम तेहि खन कय देल शेष।।
कयल प्रतिज्ञा कहल सकोप।करब सकुल तोर प्राणक लोप।।
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तखन धयल हम अपर शरीर। शुद्ध अयोनिज तेजस धीर।।
पुण्यतमा मिथिला महि जानि।भूमिसुता भेलहुं सुख मानि।।
पूर्वक पण छल पूरक काज।तैं हम वन गेलहुं ऋषिराज।।
दशमुख माया मोहित भेल।तैं हमरा लंका लय गेल।।
ततय जाय कयलहुं किछु खेल।असुरक शक्ति हरल अवहेलि।।
शक्तिक अंश अनलकां देल। तेहि कारण लंका जरि गेल।।
दोहा –
प्राणनाथ रघुनाथ पुनि,तदुपरि लंका जाय।
शक्ति हीन दशशीशकां,मारल रण खिसियाय।।
सोरठा –
सुनु मुनिगण संज्ञान,तैं कारण दशकंठकां।
कहलहुं मृतक समान,हास्यक कारण सैह छल।।
सीता अप्पन हंसै के कारण विस्तार से बतैला के बाद कुमारी अवस्था मे मुनि के बताएल पुष्कर द्वीप के कथा सुनैलन।
पुष्कर राज राक्षस सुमाली के पुत्री कैकसी आ मुनि विश्रवा के पुत्र सहसानन रावण आ दशकंधर रावण रहय।सहसानन जेठ आ दशकंधर छोट भाई रहय।सहसानन श्वेत द्वीप आ दशकंधर लंका पर आधिपत्य जमा के राजा बनलैन।
एक लाख योजन विस्तार। पुष्कर द्वीपक परिखा धार।।
तेहि पुष्करमे पुष्कर एक। जेहि कमलक दल लक्ष अनेक।।
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तहं उत्तर मानस गिरि भार।दश हजार योजन विस्तार।।
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ततहि सुमाली निशिचर राज।रहय सदा सुख सहित समाज।।
कन्या तनिक कैकसी नाम। मुनि विश्रवहि देल सुखकाम।।
तकरासौं मुनि कयल विवाह। निशिचर संतति बढल प्रवाह।
मुनिसौं गर्भ भेल सम्पन्न।कयलक दुइ रावण उत्पन्न।।
जेठ भायकां मुण्ड हजार।दूइ सहस्त्र भुज बल विस्तार।
रावण अपर दशानन भेल।बीस भुजा विधि तनिकां देल।।
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सहसवदन रावण जेहि नाम।श्वेत द्वीप से कयलक धाम।।
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दशमुख कयल अपन आगार। लंका खार समुद्रक पार।।
दशकंधर रावण के राम बध क देलन। परंच सहसानन के भय से दिक दिगंत आक्रांत हय। सीता राम से कहलैन – आबि सहसानन के बध करूं।
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जौं सहसानन मारल जाय। त्रिभुवन सुयश अवश रह छाय।।
परंच राम सहसानन के बध न क पैलन आ युद्ध में स्वयं अचेत हो गेलन।तब सीता पराशक्ति काली के रूप मे सहसानन के बध क देलन।
काली रूप धयल प्रत्यक्ष।अयलीह रावण रथक समक्ष।।
खपर खड्ग सभ धयलइन हाथ।श्रेणी सभ झपटल रिपु माथ।।
क्षण मे अयलिह रिपुक समीप।लगलिह काटय मुण्ड सुदीप।।
लीलहि रिपुक सहस्त्रों मुण्ड।क्षणमे काटल काली झुण्ड।।
बाद मे सीता के स्पर्श से राम के अचेतपन (मूर्छा )टूटल।तब सीता राम से कहलैन –
हमरा अंहाकां नहि किछु भेद। एके थिकहुं कहै छथि वेद।।
लीला हेतु धयल दुइ देह। ब्रह्म अंश दुहु निस्सन्देह।।
राम काली रूप सीता के स्तुति कैलन –
काली नाम सहस्त्रसौं स्तुति विभु कयल अनूप।।
चौपाई –
कयल सहस्त्रनामसौं राम। स्तुति कालीक ललित गुणधाम।।
तनिकां से पुनि बारंबार।विनय प्रणाम कयल सविचार।।
कहलनि राम दुहू कर जोड़ि।भगवति ऐश्वर वपु दिअ छोड़ि।।
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भेलिह परमा सुंदरी रूप।लज्जायुत पूर्वक अनुरूप।।
तब सीता कहलैन –
सहसानन रावण बध काल।धयल रूप हम जेहन कराल।।
तेहि रूपों हम श्वेतद्वीप।अचल रहब हे रघुकुल दीप।।
तेहि रूपैं हम पूजा लेब।पूजकां निर्भय कय देब।।
अहंक रूप स्वाभाविक श्याम। अरूण भेल रावण संग्राम।।
तेहि रूपैं हम नाथ सदाय।पूजित हयब अहंक रूचि पाय।।
संत लालदास रमेश्वर रचित मिथिला रामायण रचना क के वैष्णवी सीता के पराशक्ति सीता रूप मे दर्शेलैन।आइ मिथिला मे वैष्णवी सीता से ज्यादा पराशक्ति के मंदिर दृष्टिगोचर होइ हय।
@आचार्य रामानंद मंडल सीतामढ़ी।