लाल की ललकार
भारत मां की पीड़ा जब सह नहीं पाया है।
तब होकर के क्रुद्ध सिंह बड़ी जोर दहाड़ा है।
हद होली अब पाक तेरी कहकर गुर्राया है।
तुमने भारत मां को बहुत सताया है।
मेरे वीर जवानों का रक्त बहाया है।
और नहीं अब और नहीं हम सहेंगे अत्याचार।
शत्रु तेरी गोली अब कर नहीं पाए वार।
काश्मीर से कन्याकुमारी मेरी मां का आंचल है।
आंचल को जो छू भी लिया तो समझो पक्का काफ़िर है।
आज बुलर ,डल झील ख़ुशी के मारे कैसी पागल हैं।
बर्फानी बाबा ने देखो ओढ़ी केसर चादर है।
वर्षों बाद मेरी धरती शान से भाल उठाया है।
शान तिरंगा बिंदिया बनाकर निज मस्तक पे सजाया है।
तेरी बिंदिया की खातिर वीरों ने रक्त बहाया है।
और नहीं अब और नहीं अब कोई न रक्त बहाएगा।
मां तेरे वीरों के रक्त का कर्ज़ चुकाया जाएगा।
उनका यह बलिदान समझ लेे आज रंग लाया है।
बना स्वर्णिम इतिहास जगत जिसे बार बार दोहराएगा ।
लाल तेरे सारे शत्रुओं को चुन चुन कफ़न उधाएगा।
आज गुलामी का रेखा मोदी ने नाम मिटाया है।
तब होकर के क्रुद्ध सिंह बड़ी ज़ोर ज़ोर दहाड़ा है।