लाली के खिलोने
# * लाली के खिलौने *#
लाली सबकी प्यारी गुड़िया, नादान, भोली, शरारती सबकी लाड़ली।बाजार की हर वह चीज जो लाली के लायक होती सब खरीदी जातीं ।अब तो घर बैठे ऑन लाइन बाजार उपलब्ध है तो लाली की और भी जय।पापा कहीं जाते तो एक नया खिलौना ले आते।लाली कभी खुश होती तो कभी अजीब अजीब खिलौनों से डर भी जाती ।उसके पास खिलौनों का अच्छा संग्रह था,पर वह महज एक साल की ही तो थी।कितना खेलती।बैटरी वाले खिलौनों से तो लाली से ज्यादा उसके मम्मी पापा ही खेलते रहते ।लाली कभी बाबा के घर जाती तो कभी नाना के घर तो कभी पापा के घर जहाँ उसके पापा जाॅब करते थे।संग संग खिलौने भी जाते।होता यह था कि बैटरी बाले खिलौने कभी कभी जब कोई उनके पास से गुजरता या छू जाता तो अपने आप ही बोलने लगते।कभी हेलो तो कभी ट्वंकल ट्वंकल,डू यू वांट टू प्ले बिद मी,वन टू थ्री फोर, हाउ आर यू जैसी अनेक आवाजें स्वतः आने लगतीं।घर में काम करने वाले डर जाते और पूंछते कि आपने अभी उस खिलौने से रोने की या हंसने की आवाज सुनी क्या? मैं कहती अगर खिलौनों को छूओगे तो वे तो बोलेंगे ही।
लेकिन वह कहते कि हमने नहीं छुआ वह तो अपने आप ही बज उठते हैं शायद उनमें कोई आत्मा आ गयी है।मैंने कहा लो बैटरी ऑफ कर देते हैं, अगर अब भी बोलेंगे तो मान लूँगी कि आत्मा है या ऊपरी चक्कर है।पर अब तो कोई खिलौना नहीं बोल रहा था पर जिन्हें साबित करना था कि ऊपरी हवा है, वे बहुत से उदाहरण बताने लगे कि सामने वाली बिल्डिंग में रात में कम्प्यूटर अपने आप ऑन हो जाते हैं, लाइट जल जाती हैं, पिछले साल किसी ने फांसी लगा ली थी।अब रात को कभी इस छत पर कभी उस छत पर चक्कर लगाया करता है, बहुत लोगों ने देखा है ।
बाबा के घर ऐसा होता तो समझा जाता कि लाली के दादा -दादी की आत्मा इन खैलौनों से खेलती है।लाली जब नाना के घर आती तो कहा जाता कि लाली की नानी की नानी और नाना खिलौनों से खेलते हैं ।मेरे सारे तर्क अकाट्य हो जाते और एक सिहरन सी सबके दिलो दिमाग पर छायी रहती कि ना जाने कब लाली को चलना सिखाने वाली गाड़ी कह उठे lets go और लाइट झूम कर नाच उठे।
एक डाई इंच का Puppy है ,सिरहाने रखा था, रात में बोलने लगा, दिन में कम ही ध्यान जाता है क्यों कि दिन में उसकी आवाज अन्य आवाजों में ज़ज्ब हो जाती है ।बहुत कोशिश की है उसकी चटखनी बन्द करने की ,पर वह बोलता है।ना जाने कैसी बैटरी है उसकी डिस्चार्च ही नहीं हो रही ।घरवाले कहते हैं कि उसकी सिलाई खोल कर चटखनी निकाल दी जा ये,पर उस नन्ही जान का पोस्टमार्टम करने का मेरा कोई इरादा नहीं ।घर की बालकनी में रख दिया है, जब उसका मन करता है बोलने लगता है, मेरे सामने बोलता है तो लगता है कि जैसे मुझसे कुछ खाने को मांग रहा है ।अन्य लोगों के सामने बोलता है तो लगता है कि वह उन्हें देख कर बोल रहा है ।बच्चों के खिलौनों का एक जादुई संसार है,थोड़ी जिज्ञासा, थोड़ा सस्पैंन्स,थोड़ा थ्रिल सब कुछ मिल कर जिन्दगी में नया संसार रच रहे हैं
लाली के खिलौने, कभी जाॅनी जाॅनी यस पापा तो कभी कभी आर्केस्ट्रा वाली धुनें और रंग बिरंगी घूमती फिरती रौशनी*******
*********मीरा परिहार****11/11/2018