लाया था क्या साथ जो, ले जाऊँगा संग
होता हूँ ये सोचकर,कभी- कभी मैं दंग।
लाया था क्या साथ जो,ले जाऊँगा संग।
ले जाऊँगा संग, बता मन पगले मुझको।
बैठा है जो आज, स्वार्थ ये घेरे तुझको।
कह ‘रमेश’कविराय,व्यर्थ में क्यों है रोता,
होना होता देख , यहाँ जो होना होता।
रमेश शर्मा