लाड़ली लाड़ो
लाड़ली लाड़ो
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लाड़न ते पारी लाड़ो ल्हौरी अति लाड़ली है,
लाड़ कूँ लड़ाय मेरे मन कूँ लुभाय रे ।
मीठी तुतलाय बोल गोदी चढ़ जाय कभी,
पामन ते लिपट लिपट मुसकाय रे ।
काँधे चढ़ कूदै कभी पीठ ते चिपक जाय,
साँझ ढरे रोज मोय घोड़ा ऊ बनाय रे ,
‘ज्योति’ कहै लाड़ो मोय पुरवा सी ब्यार लगै,
बैनन लुभाय चित सैनन चुराय रे ।।१
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कागज कौ टूक लाकै बोलै बाबा नाव बना,
फट जाय कागज तौ फैल-फैल जाय रे ।
कभी कहै खेलौ मेरे संग सब लुक-छिप,
खेलूँ न मचल जाय बस में न आय रे ।
पामन में पायलिया पहर ठुमक चलै ,
पीछै मुड़ देखै खिल हँस किलकाय रे ।
‘ज्योति’ कहै लाड़ो मोय जाड़े की सी धूप लगै,
निरखूँ करेजा मेरौ स्वाँत अति पाय रे ।।२
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माथे पै लगाय बैंदी काजर लगाय नैन ,
गुड़िया कूँ लोरी गाय थपक सुवाय रे ।
साड़ी बाँध घूँघट की ओट ने निगोड़ी हँसै,
रिस खाय रूँसै घर अधर उठाय रे ।
खेलै एक टाँग कभी कोर -राजा माई-साई,
मछरी बनै तौ पानी हाथन बताय रे ।
‘ज्योति’ कहै लाड़ो मोय खेल की पिटारी लागै,
कैसे-कैसे खेलन कूँ खेलै है खिलाय रे ।।३
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जिद करै क्रोध आय पीट नहीं पाँऊ वाय,
डाँटू , सुबकन लागै ठड़ी खड़ी आगै री ।
आँखन तरेर कभी भूले तेउ देख लऊँ,
कौने माँहि छिपवे कूँ सरपट भागै री ।
अधखुले नैन सोय टूक लगै चंदा की सी ,
भोर में जगाऊँ सोय जाय नाय जागै री ,
‘ज्योति’ कहै लाड़ो मोय प्रानन ते प्यारी लगै ,
जानै कौन जनम कौ पुन्न फलौ लागै री ।।४
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बेटी है परायौ धन ,जाय छोड़ एक दिन,
मान कूँ झुकाय एक दिन मान बन जाय ।
छोड़ कै बसेरौ नये नीड़ में बसेरौ करै ,
पल में पलट रूप मेहमान बन आय ।
दान में स्वयं जाय जानै कहँ छिप जाय,
खिलै फूल बन कै मधुर गंध बिखराय।
‘ज्योति’ कहै लाड़ो मोय लागै है अमर बेल ,
जानै कहाँ जाय कै पसर कै बिखर छाय ।।५
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मेरे घर तुलसी के बिरवा सी पुज रही ,
जानै कौन कहाँ जाय सोभा बन जायगी ।
कैसौ घर कैसौ वर पायगी न जानै कोई ,
कैसै जानै सासरे में जाय कै निभायगी ।
आज तौ लुभाय रही मीठी-मीठी मुसकाय ,
डोली चढ़ जायगी तौ कितनौ रुवायगी ।
‘ज्योति’ कहै लाड़ो आज मोह रही तुतलाय ,
काई दिना आँगन कूँ सूनौ कर जायगी ।।६
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-महेश जैन ‘ज्योति’
मथुरा ।
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