लाचार जन की हाय
जहां मनुष्यता को बिसरा कर
बस भवन निर्माण पर हो जोर
उस राष्ट्र और समाज की दशा
सदा सर्वदा रहती है कमजोर
भवनों से यदि हो जाता मानव
का चहुंमुखी विकास व उत्थान
तो कभी गर्त में नहीं समाए होते
जार निकोलस जैसे नृप महान
मानवता जहां सिसकती रहती
किसी के पहलू में सिर छिपाय
उस राष्ट्र के नेताओं को खा जाती
है बेबस और लाचार जन की हाय