लहू का कारखाना
हम कहाँ गुजरा जमाना चाहते हैं।
हम नये युग को सजाना चाहते है।।
अब नदी तालाब पर्वत सब खिलेंगे।
नव सदी की नव सुबह से हम मिलेंगे।
चाँद, सूरज, ग्रह, सितारे लक्ष्य में हैं।
नभ, जमीं,आकाशगंगा साक्ष्य में हैं।
हम सभी पर घर बनाना चाहते हैं।
हम नये युग को सजाना चाहते हैं।।
वक्त की हर चाल पे अब शोध होगा।
मौत, कैसे, कब, कहाँ ये बोध होगा।
अब रसायन भौतिकी विज्ञान के बल,
वृक्क, ह्रदय, फेफड़ा निर्माण होगा।
हम लहू का कारखाना चाहते हैं।।
हम नये युग को सजाना चाहते हैं।।
अपनी करनी पर हमें विश्वास दे दे।
पास है कुछ और थोड़ा खास दे दे।
सोच शक्ति हौसला उन्माद के संग,
सच करें हर ख़्वाब को परवाज दे दे।
स्वर्ग तक सीढ़ी बनाना चाहते हैं।।
हम नये युग को सजाना चाहते हैं।।
संतोष बरमैया जय