फ़क़त फरियाद है इतनी
तेरा दीदार जब होता
मैं खुद को भूल जाता हूँ ।
मेरे दिलवर बता दे तू
कि ऐसी बात क्या तुझमें।
बिना बोले ही चल देते,
कभी कुछ कहकर के जाओ।
निगाहें ढूढती रहती,
नहीं रह पाता हूँ तुझ बिन।
नज़र पड़ जाएगी तेरी,
शुकूं मिल जाएगा मुझको।
जरा सा ठहर कर जाना,
अगरआना शहर में कल।
मिल गए जबसे तुम मुझको,
मुझे कोई नही भाता।
जमाना पीछे छोड़ आया,
मिली सोहबत तेरी जबसे।
न ख्वाहिश है न ही शिकवा,
फ़क़त फरियाद है इतनी ।
हाथ मेरा थाम कर रखना,
जब आएगा आखिरी दिन ।
सतीश शर्मा, सृजन, लखनऊ।