लम्बा पर सकडा़ सपाट पुल
लम्बा पर सकडा़ सपाट पुल
पुल के उस पार पानी
पुल के इस पार भी पानी।
पुल के एक ओर ऊपर
बैठा एक अकेला प्राणी,,
सोच मग्न, स्वप्न भग्न
न जाने क्या उसने मन ठानी।
ना भय किसी तरह का
ना किसी अनहोनी का भय,
देख रहा दूर तलक तक
किसी की न उसे भनक तक
फिर भला,,कोई??
कैसे जानें उसकी कहानी!!
सिलसिला बातों का बंद था,
न जाने कब से!!
हो चुकी थी शायद अब
अहसासों की रवानी??
भान था शुरुआत से ही
कोई अपना है उसका सानी,
गुजरते वक्त के साथ
समझ तो गए कब,,,
वो सब वो खूबसूरत बातें
जो थी अब बेगानी।।
-सीमा गुप्ता,अलवर राजस्थान