लबों की तिस्नगी
धड़कनों पर मर्जीयां किसी और की, ये कैसा नसीब है
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मुद्दतों बाद फिर जी उठे जो आज वो रूह के करीब है
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आज वो हमसे हम उनसे कोई फासले ना रहे पर
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बुझाये नहीं बुझती लबों की ये तिस्नगी भी अजीब है
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धड़कनों पर मर्जीयां किसी और की, ये कैसा नसीब है
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मुद्दतों बाद फिर जी उठे जो आज वो रूह के करीब है
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आज वो हमसे हम उनसे कोई फासले ना रहे पर
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बुझाये नहीं बुझती लबों की ये तिस्नगी भी अजीब है
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