लड़की होना,क्या कोई कसूर है?
लड़की होना,क्या कोई कसूर है?
मैं अपनी मर्जी से कहीं जा नहीं सकती।
अपने लिए कोई भी ख़ुशी पा नहीं सकती।
लोगों को क्यों अपना सच समझा नहीं सकती?
मेरे लिए क्यों हर दर दूर है?
मैं लड़की हूँ क्या कोई कसूर है?
मैं अपनी राह चल नहीं सकती।
मैं चाह बदल नहीं सकती।
मैं कोई अपना बना नहीं सकती।
मैं कोई सपना सजा नहीं सकती।
लड़की के लिए क्यों बंदिशें मशहूर हैं?
हैं लड़की तो क्या कोई कसूर है?
कभी परिवार,कभी समाज के लिए मुझे झुकना पड़ता।
कभी धर्म,कभी रिवाज के लिए मुझे रुकना पड़ता।
लड़की होने का दुःख हर पल सहना पड़ता।
दूसरों के हिसाब से रहना पड़ता।
जीवन में एक लड़की क्यों इतनी मजबूर है?
मैं लड़की हूँ क्या इसमें मेरा कसूर है?
बचपन से बुढ़ापे तक सहती नारी।
दुखों में पलकर रहती दुखियारी।
जैसे न हो इंसान,हो कोई बीमारी।
क्यों बनाता ये समाज हमें बेचारी?
हमारे बस कर्तव्य,अधिकार क्यों हमसे दूर है?
कोई बताएं मुझे क्या लड़की होना कसूर है?
लड़की होना अगर पाप, तो मैंने तो नहीं किया।
लड़की होना अगर श्राप,तो मैंने तो नहीं दिया।
फिर तो मैं निर्दोष हूँ, आखिर मैंने क्या किया?
फिर क्यों कभी कोई,कभी कोई दुखाता मेरा जीया?
मेरे लिए क्यों हर लक्ष्य-स्वप्न दूर है?
मैं भी तो इंसान हूँ,
तो क्यों इंसानियत मुझसे दूर है?
क्यों हमारी जात तक मजबूर है?
लड़कियाँ होना क्या कोई कसूर है?
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
नियर द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78