Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Jun 2023 · 2 min read

#लघु_व्यंग्य

#व्यंग्य_कथा
■ हसरत का गुब्बारा
【प्रणय प्रभात】
लगभग चार साल बाद एक कार्यक्रम में नेताजी टकरा गए। वही कुटिल सी मुस्कान और दुआ-सलाम का धूर्तता भरा अंदाज़। एक मिनट के लिए खैर-कुशल की औपचारिकता और फिर वही बरसों पुराना सवाल। “क्या लग रहा है इस बार…?”
समझते देर नहीं लगी कि माननीय बनने का कीड़ा खोपड़ी में फिर कुलबुला उठा है। चुनावी साल में सत्तारूढ़ पार्टी के दलाल से क्षेत्र का लाल बन कर निहाल और मालामाल बनने की आग अब भी जवान है।
“लगना क्या है साहब! आपकी पार्टी ही भारी पड़नी है इस बार भी। इतना माल और मशीनरी विरोधियों के पास कहाँ, जो आपके दल के पास है।” मैंने फ़ोकट की चोंचबाज़ी से बचने के लिए उनके मन जैसी बात की। मंशा थी सियासी सवाल-जवाब और बहस से बचने की। पता नहीं था कि जवाब हवन-कुंड में घी की आहुति का काम कर डालेगा।
लगभग चहकते हुए नेताजी फौरन मूल मुद्दे पर आ गए। बोले- “इसमें तो कोई शक़ ही नहीं कि इस बार भी सरकार हम ही बनाएंगे। आप तो अपने क्षेत्र की बताओ ताकि जी-जान से लगें इस बार कोशिश में।” कहने का अंदाज़ ऐसा मानो इससे पहले कभी कोशिश की ही न हो और इस बार मुझ जैसे दीन-हीन पर कृपा करने के लिए मन बनाने जैसा अहसान थोप रहे हों।
समझ आया कि सीधा कहने से समझने वाले ये हैं नहीं। पल भर सोचे बिना मैंने भी कह दिया- “क्यों नहीं, क्यों नहीं…? बिल्कुल करें प्रयास। हारेंगे तो आप भी नहीं।” नेताजी के चेहरे पर अचानक दर्प भरी मुस्कान उभर आई। आसपास बैठे चार-छह चेले-चपाटे भी ख़ुश दिखे। जिनके चमत्कृत होने को भांप कर नेताजी को मानो और बल मिल गया। उन्होंने तुरंत एक कौतुहल भरा सवाल मेरी ओर उछाल दिया। खींसे निपोरते हुए बोले- “अरे वाह यार! आपने इतना पहले इतना सटीक अनुमान कैसे लगा लिया?”
उन्हें शायद पता नहीं था कि मुझे इस सवाल का पहले से अंदाज़ा था। अंदाज़ा क्या, सवाल के शब्द मेरे अपने थे, जो पहले उनकी खोपड़ी में उतरे और फिर मुंह से निकले। बिल्कुल मेरे पूर्वानुमान के मुताबिक। लिहाजा मुझे उनकी जिज्ञासा को शांत करने में पल भर नहीं लगा।
मैंने उनके हाथ से अपना हाथ धीरे से छुड़ाया। कपड़े झाड़ते हुए खड़ा हुआ और बोला- “सर जी! जीत-हार दोनों के लिए सबसे पहले ज़रूरी होता है टिकट मिलना। हारेंगे तो तब ना, जब टिकट की जंग जीतेंगे।” जवाब उन्हें तत्काल समझ आया या नहीं, मुझे नहीं पता। मैं अपनी बात कह कर अन्य परिचितों के समूह की ओर बढ़ गया था और वे अपनी जगह अवाक से बैठे रह गए थे। दावेदारी की गरमा-गरम गैस का गुब्बारा शायद फूट चुका था। दो-चार-छह दिनों के लिए।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

1 Like · 434 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
तुम जुनून हो
तुम जुनून हो
Pratibha Pandey
धर्म के परदे  के   पीछे,  छुप   रहे    हैं  राजदाँ।
धर्म के परदे के पीछे, छुप रहे हैं राजदाँ।
दीपक झा रुद्रा
“तुम हो जो इतनी जिक्र करते हो ,
“तुम हो जो इतनी जिक्र करते हो ,
Neeraj kumar Soni
पितरों का लें आशीष...!
पितरों का लें आशीष...!
मनोज कर्ण
आज के बच्चों की बदलती दुनिया
आज के बच्चों की बदलती दुनिया
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
बेरोजगारी के धरातल पर
बेरोजगारी के धरातल पर
Rahul Singh
ବିଶ୍ୱାସରେ ବିଷ
ବିଶ୍ୱାସରେ ବିଷ
Bidyadhar Mantry
दो दोहे
दो दोहे
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
दोहा
दोहा
Neelofar Khan
अगर आप सफल
अगर आप सफल
पूर्वार्थ
*******खुशी*********
*******खुशी*********
Dr. Vaishali Verma
जब तक प्रश्न को तुम ठीक से समझ नहीं पाओगे तब तक तुम्हारी बुद
जब तक प्रश्न को तुम ठीक से समझ नहीं पाओगे तब तक तुम्हारी बुद
Rj Anand Prajapati
यूं  बड़े-बड़े ख्वाब
यूं बड़े-बड़े ख्वाब
Chitra Bisht
4417.*पूर्णिका*
4417.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मज़दूर
मज़दूर
Neelam Sharma
*सास और बहू के बदलते तेवर (हास्य व्यंग्य)*
*सास और बहू के बदलते तेवर (हास्य व्यंग्य)*
Ravi Prakash
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
🙅विज्ञापन जगत🙅
🙅विज्ञापन जगत🙅
*प्रणय*
" वो "
Dr. Kishan tandon kranti
जमाना खराब हैं....
जमाना खराब हैं....
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
मन  के बंद दरवाजे को खोलने के लिए
मन के बंद दरवाजे को खोलने के लिए
Meera Thakur
रातों में यूं सुनसान राहें बुला रही थी,
रातों में यूं सुनसान राहें बुला रही थी,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
कुछ खो गया, तो कुछ मिला भी है
कुछ खो गया, तो कुछ मिला भी है
Anil Mishra Prahari
क्षणिका :  ऐश ट्रे
क्षणिका : ऐश ट्रे
sushil sarna
बेटी का घर बसने देती ही नहीं मां,
बेटी का घर बसने देती ही नहीं मां,
Ajit Kumar "Karn"
यात्राएं करो और किसी को मत बताओ
यात्राएं करो और किसी को मत बताओ
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
दुनियाँ की भीड़ में।
दुनियाँ की भीड़ में।
Taj Mohammad
प्रिय
प्रिय
The_dk_poetry
प्यासा के भोजपुरी ग़ज़ल
प्यासा के भोजपुरी ग़ज़ल
Vijay kumar Pandey
*हैं जिनके पास अपने*,
*हैं जिनके पास अपने*,
Rituraj shivem verma
Loading...