#लघु_कविता
#लघु_कविता
■ कोई शिकायत नहीं…!
【प्रणय प्रभात】
औरों जैसे ही थे,
तुम भी वैसे ही थे।
भावना से परे
ख़ुद में ही लीन से,
चेतना-हीन से।
ना सुखी, ना दुःखी,
सुप्त अंतर्मुखी।
चाह हो कर भी चाहत नहीं।
तुम से कोई शिकायत नहीं।।
#लघु_कविता
■ कोई शिकायत नहीं…!
【प्रणय प्रभात】
औरों जैसे ही थे,
तुम भी वैसे ही थे।
भावना से परे
ख़ुद में ही लीन से,
चेतना-हीन से।
ना सुखी, ना दुःखी,
सुप्त अंतर्मुखी।
चाह हो कर भी चाहत नहीं।
तुम से कोई शिकायत नहीं।।