लघु कथा
लघुकथा (प्रेम)
प्रेम दो आत्माओं का मिलन है, यूँ कहूँ कि इक अट्टू बंधन है!
ये दो शब्द अट्टू प्रेम का हिस्सा माने जाते हैं! इसमें कुछ खट्टी-मीठी यादें भी होती हैं!
श्याम और मनीषा की कुछ इसी तरह की कुछ यादें हैं । याद ही बनकर रह गई ।
श्याम : – श्याम के बारे में मनीषा बात ना करें ऐसे लगता था जैसे कुछ गुम हो गया हो!
मनीषा: – अपने सपनों के राजकुमार से सपनों में ही लड़ना-झगड़ना, रूढना-मनाना सब मन ही मन करती थी!
मनीषा: – दिल से श्याम को चाहती थी लेकिन कभी महसूस नहीं होने दिया ।
श्याम: – श्याम के बारे में जानना भी चाहा क्या काम करता है, मग़र श्याम अपनी दूसरी दुनियां में काफी व्यस्त था। कभी जवाब देना उचित नहीं समझा ।
मनीषा: – मनीषा भी अपने काम-काज में काफी व्यस्त होने के कारण, मौन धारण कर लेती थी।
श्याम और मनीषा: – दोनों का वक्त बितता गया, दोनों आज भी एक- दूसरे की खबर रखते हैं मग़र महसूस नहीं होने देते ।
श्याम: – श्याम बड़ा हठीला स्वभाव का था, वो कभी झुकने को तैयार नहीं होता था। माफी तो दूर की बात अपनी गलती भी स्वीकार नहीं करता था ।
मनीषा: – मनीषा ने श्याम को काफी बार समझाना चाहा मग़र श्याम कभी झुकने के लिए तैयार नहीं हुआ ।
मनीषा: – मनीषा ने भी अपना मन मजबूत किया दिल की बात दिल में दबा कर रखी । कभी अपना प्यार श्याम को महसूस नहीं होने दिया ।
मनीषा: – आज भी श्याम को मन ही मन उतना ही प्यार करती है । जितना उस जमाने में, मग़र आज दोनों अपने-अपने परिवारों के साथ बहुत खुश है ।
कुछ यादें, कुछ बातें, मन की बात मन में ही दबी रह जाती है। कब बच्चपन, जवानी कब बुढ़ापा आ जाता है। यादें रह जाती हैं मनुष्य इस जहाँ से चला जाता है ।
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़