लघु कथा,
आशीष अपने माता, पिता के साथ एक शादी समारोह से लोट रहा था कि सड़क दुर्घटना में ये तीनों शिकार हो गये, पिताजी ने तो अस्पताल पहुँचने के पहिले ही प्राण त्याग दिए, माँ और आशीष को चोटें अधिक आई थी | माँ को 15 दिन अस्पताल में रहने के बाद छुट्टी हो गई पर आशीष को बचाने के लिये डाक्टरों को कोहनी के ऊपर दोनों हाथ काटना पड़े | मुआबजे में मिले ढाई लाख रूपये कितने दिन साथ दे सकते थे | उसी साल उसे इन्टर की परीक्षा में शामिल होना था पर भाग्य को क्या कहा जाय, उसके शिक्षक ने उसका हौसला बढ़ाते हुये उसको सुझाव दिया “ आशीष हिम्मत रक्खो तुम्हारे हाथ नहीं हैं पर पैर तो हैं,” आशीष ने दाहिने पैर के अँगूठे और ऊँगली में पेन्सिल से चित्र बनाना प्रारम्भ किया, कुछ ही दिनों के अभ्यास से देवी, देवताओं के चित्र बनाने लगा, उससे उसे जो आय हो जाती उसी को ईश्वर की कृपा मानता, माँ उसे अपने हाथों से खाना खिलाती और वह अपने पैर के सहारे चित्र बनाता अब यही जीवन का क्रम था, धीरे धीरे वह व्यक्ति को सामने बिठा कर उसका चित्र बनाने लगा इससे उसकी आय भी होने लगी और नाम भी कि आशीष चित्रकार अपने पैर से चित्र बनाता है | एक बार ग्वालियर मेले में उसने अपना स्टाल लगाया एक व्यक्ति का उसने चित्र बनाया उस व्यक्ति का ग्वालियर में एक माल था वह आशीष से इतना प्रसन्न हुआ की उसने आशीष को उसी माल में एक स्थान दे दिया, यहाँ उसका व्यवसाय अच्छा चलने लगा |
उसकी माँ सोचती मैं तो अब बूढ़ी हो रही हूँ, अभी तक तो मैं उसे अपने हाथ से दोनों समय खाना खिलाती हूँ मेरे बाद उसका क्या होगा, हे ईश्वर! उस पर दया करना, माँ तो चली गई पर ईश्वर ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली |
आज पत्नी की गोद में सिर रखे आशीष कह रहा था, मैं तो ईश्वर को बहुत धन्यवाद देता हूँ कि माँ के जाते ही मुझे तुम्हारा सहारा मिल गया अन्यथा मुझे खाना कौन खिलाता ?