लघु कथा – मिलावट
मोती बहुत बीमार चल रहा है। तपेदिक है उसे। काफी समय से मजदूरी पर न जा पाने के कारण घर की माली हालत खस्ता चल रही है। वैसे मोती सेठ जी का पसंदीदा कारीगर है। सेठ जी अन्य मजदूरों के सम्मुख भी उसकी कई बार प्रशंसा किया करते हैं ।
यही कारण है कि उसकी तबीयत का हाल पूछने वे घर भी आए। बोले–“मोती फिक्र न करना इलाज ठीक से कराना और कल तेरे बच्चे या पत्नी को साइट पर सुबह भेज देना। वहीं रुपए दे दूँगा। भाग दौड़ नहीं करनी पड़ेगी। भाग दौड़ करनी है तो इलाज के लिए करना”
“कहे तो पैसा घर भेज दूँ?”
“मैं मंगवा लूंगा हुजूर। ”
“मेहरबानी माई बाप ”
मोती हाथ जोड़कर रो पड़ा।
सेठजी मानवता व दरियदिली के लिए जाने जाते थे।
मोती व उसकी पत्नी रुक्मी दोनों सेठ जी की सज्जनता से वाकिफ थे। मोती ही पत्नी रुक्मी से बोला-” तू चली जाना। बच्चे को स्कूल जाने दे। ”
रुक्मी साइट पर पहुंची। यह क्या?
“आज तो छुट्टी जैसा लग रहा है।”
वह जाने के लिए पलटी ।
“ठहरो रुक्मी….. ”
जी जी सरकार…..” वह घबरा गयी।
सेठ जी आगे आए और रु देकर बोले -” यह लो पूरे दस हजार हैं। ”
सरकार… बात.. तो बी.. बीस ह.जा… र
वह कल घर पर दूंगा। बच्चे को न भेजना उसे न दूंगा। पता नहीं कोई छीन ले उससे।
उसे संग लाने की क्या जरूरत। बाकी के दस हजार कल शाम को घर अकेली आकर तू ही ले जाना।” सेठ जी ने रुपये हथेली पर रखते समय हाथ पकड़ लिया।
” समझी तू! ” कुटिल मुस्कान सेठ जी के अधरों की शोभा बढ़ा रही थी।
रुक्मणी एकाएक घबरा कर पीछे खिसक गई। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था कि क्या करे।
रुक्मी ने आज इस इंसान का वह खतरनाक चेहरा देखा
जिस पर नकली मुखौटा था। इंसानियत में हैवानियत की मिलावट की बू आ रही थी।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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