लघु कथा:सुकून
लघु कथा:सुकून
कहाॅं है यह?
कौन पापा, यही नेता……
दूसरी तरफ से मेरे ससुर जी मुझसे अपने बेटे के बारे में पूछ रहे थे। मैंने सहज भाव से उत्तर दिया पता नहीं !
क्यों ?
अब मुझे थोड़ा संभल कर जवाब देना था मैंने कहा शायद दिल्ली गए हैं, मैंने दोपहर में बात की थी तब उन्होंने बताया था। वह मुझसे सवाल करते गए और मैं सहजता से उत्तर देती गई। मैंने बातों का रुख़ बदलते हुए पूछा मम्मी जी कहाॅं है? (सासू माॅं) अब उनकी तबीयत कैसी है ? ससुर जी ने कहा सही है, अब आराम है, अपने मायके गई है। मैंने जिज्ञासा बस पूछ कहाॅं ? उसका मायका कहाॅं है! वहीं गई है। रोब है उसकी वहाॅं! चलती है उसके मायके में!
अब मेरे मुॅंह से अचानक ही निकल पड़ा पापा लड़कियों की तो मायके में चलती है और चलनी भी चाहिए। बस ससुराल में ही नहीं चलती वही बेबस, लाचार सी नजर आती है चाहे वह कितनी ही गुणी क्यों न हो पापा दूसरी तरफ मौन थे।
और मैं स्तब्ध थी कि मैंने यह शब्द कैसे कह दिए मगर एक सुकून भी था कहने के बाद और अचरज भी!
हरमिंन्दर कौर
अमरोहा (यूपी)