#लघुकविता- (चेहरा)
#लघुकविता-
■ अब चेहरा झूठ बोलता है।।
【प्रणय प्रभात】
“भावों को पढ़ना सरल नहीं
कोई मत गढ़ना सरल नहीं।
अनुमान लगाना मुश्किल है
अंतर तक जाना मुश्किल है।
मन बस कुछ देर बदलता है
जो दिखता झूठ निकलता है।
आवरण अनेकों धारण कर
उत्पन्न भरम के कारण कर।
दिख पाता कोई तथ्य नहीं
कहने को कोई कथ्य नहीं।
क्षण भर में जाना-पहचाना
क्षण भर में होता अंजाना।
कितने ही सच झुठलाता है
मिथ्या को सच बतलाता है।
ना लेश-मात्र परिचायक है
निश्चित मानो यह भ्रामक है।
कब कोई भेद खोलता है।
अब चेहरा झूठ बोलता है।।
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●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)