#लघुकथा-
#लघुकथा-
■ वको ध्यानम्
【प्रणय प्रभात】।
शहर भर में बाबा हंसदास की चर्चा थी। चर्चा का विषय थी बाबा की ध्यान साधना। जो इस बार पूरे 72 घण्टे चलने वाली थी। भक्तों में अपार हर्ष था। माहौल को टीआरपी में बढलने के लिए मीडिया भी उतावला था। मामला बाबा की कृपा-दृष्टि पाने का जो था।
अंततः वो दिन आ भी गया। लंगोट कस के तैयार बाबा पद्मासन में बैठे और ध्यान-मग्न हो गए। दर्शनार्थियों की भीड़ जयघोष में जुट गई। आधा शहर मौके पर था। बाक़ी घरों में टीव्ही से चिपके थे। कुल मिला कर आस्था सातवें आसमान पर थी।
अचानक वो हो गया, जो किसी की कल्पना तक में नहीं था। एक कैमरा- मेन ने ज़ूम करते हुए फ़ोकस बाबा के चेहरे पर कर दिया। वो भी कपाल और कपोलों के बीच बंद आंखों पर। जहां पलकों के पर्दों के पीछे दोनों पुतलियां लगातार ब्रेक-डांस कर रही थीं। इन भटकती हुई पुतलियों ने बाबा की भटकती हुई रूह का राज़फाश कर डाला। सब जान गए कि महाराज नाम से “हंसदास” हो कर भी वृत्ति से “बगुला-भगत” ही थे।
★संपादक★
न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्य प्रदेश)
#स्पष्टीकरण-
【इस दिव्य-कथा पूरी तरह काल्पनिक है। जिसका किसी भी ज़िंदा या मुर्दा इंसान से कोई जायज़-नाजायज़ सम्बन्ध नहीं है। क़सम मैसूर-पाक की। नारायण-नारायण।】
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