#लघुकथा
#लघुकथा
■ खत्म हुई तलाश…।
(प्रणय प्रभात)
स्व-घोषित समझ और स्व-पोषित आत्म-मुग्धता से ग्रस्त एक स्वयंभू ज्ञानी ने अच्छों और अच्छाई की तलाश में दुनिया की खाक़ छानी। इस कोशिश में जीवन के अमूल्य 40 साल बर्बाद करने के बाद भी सफलता न मिलनी थी, न मिली।
थक-हार कर उसने 40 सेकंड में एक निर्णय लिया। निर्णय था ख़ुद को 40 मिनटों के लिए अच्छा बना कर अपनी पूर्वाग्रही सोच की संकीर्ण चार-दीवारी से बाहर निकलने का। अगले 41वें मिनट में उसकी दृष्टि के साथ सृष्टि बदल चुकी थी। अब उसे न कोई बुरा दिखाई दे रहा था, न किसी की बुराई।।
★सम्पादक★
न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)