#लघुकथा
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■ शरणार्थी शिविर से हालात
【प्रणय प्रभात】
उस घनी काली व भयावह आधी रात तक बिस्तर पर वो दो ही थे। अलसुबह तक 15 हो गए। पति-पत्नी के अलावा 2 लोटे, 1 परात, 4 गिलास, 4 कटोरी व 2 टिफन मिला कर 13 छोटे-बड़े बर्तन। जिनमें बरसात का पानी टप-टप कर के इकट्ठा हो रहा था।
बिस्तर और ख़ुद को बेरहम वरसात से बचाने की यह नाकाम सी कोशिश एक कमरे के किराए वाले बाबा आदम के ज़माने के खस्ताहाल घर में जारी थी। जो अब हर तरह से एक शरणार्थी शिविर जैसा नज़र आ रहा था।
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(एक भोगी हुई भयावह रात ओर भीषण बरसात की काली याद पर आधारित)
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●