#लघुकथा-
#लघुकथा-
■ एक तीर, कई शिकार…।।
【प्रणय प्रभात】
मुंह-अंधेरे फेरों से उठा दूल्हा किसी रस्म पर टेसू सा अड़ गया। मामला था मुंह मांगा नेग न मिलने का। वधु-पक्ष स्तब्ध था। कुछ भी कह पाने में नाकाम। भन्नाया हुआ दूल्हा साफा, पटका, कटार वहीं फेंक भाग निकला। लड़की वालों की भारी जग-हंसाई हुई। मीडिया वालों से लेकर जानने वालों तक ने किरकिरी की सो अलग।
उधर भागा हुआ दूल्हा साल भर अपनी मस्ती में मस्त रहा। शर्म थी नहीं तो मलाल भी क्या होता। एक साल बाद घर वालों ने बेक़द्री की तो बीवी की कमी अखरी। घर वालों को औक़ात याद दिलाना भी ज़रूरी लगा। बंदे ने उठाई बाइक और चल दिया ससुराल की ओर। आंखों में हसीन ख़्वाब लिए। सोच रहा था कि इंतज़ार में बेचैन बीवी उसे देखते ही अमरबेल सी लिपट जाएगी और ससुराली आवभगत में जुट जाएंगे।
ससुराल के दरवाज़े को दस्तक दी तो एक साल पुरानी दुल्हन को सामने पाया। चेहरे पर बहुत निखार आ चुका था एक साल में। बेक़ाबू दिल ने पल भर में सपनों की उड़ान शुरू कर दी। इससे पहले कि कुछ बोल पाता, बीवी ने ही तमक कर पूछ लिया आने का कारण। लड़की की आंखों में अंगारे नज़र आने लगे। उसने एक रात के दूल्हे को यह कहते हुए उसकी हद याद दिला दी कि- “वो सत्ता के सिंहासन की लोभी कोई राजनैतिक पार्टी नहीं, जो उस जैसे बेग़ैरत और धोखेबाज़ से फिर नाता जोड़ ले। याद रखना, मेरा घर किसी पार्टी का मुख्यालय नहीं है कि जब मन किया आए और जब दिल किया चलते बने। अब फुट लो यहां से।।”
दिन-रात टीव्ही पर सियासी खबरें देखने वाले लड़के को तत्काल समझ आ गया कि लड़की का इशारा किस तरफ है। उसने फौरन यू-टर्न लेने में ही भलाई समझी और लौट पड़ा। शायद समझ चुका था कि आज भी दुनिया में खानदानी लोगों की कमी नहीं। वो जान गया कि थूके को चाटने की परिपाटी अब भी सिर्फ़ सियासत में ही है।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)