लघुकथा
शीर्षक :–गूंज
“क्या लगाती हो भाभी,दिन पर दिन.निखरती जा रही हो!सच कहें तो हमें अब जलन होने लगी है।”आँगन में फैलकर बैठी देवरानी बोली
“हाँ मम्मी,ताई जी को देख कर तो मुझे भी जलन होती है ।”दो माह पहले ही ब्याह कर आईडी.एस.पी. बहू ने भी ताना मारा
मालिनी जब भी आती,चचेरी देवरानी उसके रंग-रूप पर सदैव छींटाकशी करती रहती थी ।अब तो उनकी बहू भी ….ं।
अभी खिसियाई मालिनी कुछ कहती कि छोटी देवरानी ने भी तड़का लगाया,”भाभी ,पता है जब ये कालेज में पढ़ती थी तब छज्जे टूटते थे..।”
मालिनी की सहन शक्ति जबाव दे रही थी
“अरे भैया ,गज़ब शायरी लिखती हैं आप तो।कविता और न जाने क्या -क्या?और फोटोज़ तो देखो.. एक से बढ़कर एक स्टाइलिश।”बड़ी देवरानी हाथ नचाते बोलीं उनकी कुढ़न साफ दिख रही थी “हमें तो यह सब न आता ।हम तो बस अपना घर सँभाले हैं। #खपसूरत जो न हैं !!”
समवयस्क जेठानी के सामने हीनताबोध से ग्रसितवह अपनी भड़ास यूँ ही निकालती ।बहू के आने से पहले मालिनी सहज रहती थी,अनसुनी कर देती थी।पर बहू के सामने यह छींटाकसी मालिनी को उचित न लगी।
” देवरानी जी ,डी. एस.पी. बहू आ गयी तो भी जलन न मिटी?रहा सवाल पढ़ने लिखने का तो यह हुनर हर किसी के पास होता है,बस कोई दूसरे को नीचा दिखाने में लगा देता हैतो कोई स्वयं को निखारने में।”
अचानक आँगन में सन्नाटा छा गया पर एक गूंज सुनाई दे रही थी।
पाखी_मन
29-09-2021