लघुकथा
रूप बड़ा या गुण…??
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तू मर क्यों न जाती कलमुँहीआखिर यूँ कबतक हमारे सीने पर मूंग दलती रहेगी माँ के ये शब्द कमली को व्यथित करने को प्रयाप्त थे, कारण अबतक समूचे ग्राम वासियों से लेकर घर में उपस्थित तमाम सदस्यों ने उसकी कुरूपता पर बार बार तंज कसे यहाँ तक कि उसके पिताश्री ने भी जब जब उसकी शादी लगने के बाद केवल उसके रंग रूप के कारण टूटी उसे ताने देने में कोई कसर उठा न रखा किन्त हर एक बार माँ ने उसे अपने आँचल की छाया प्रदान कर उसके मनोबल को टूटने से बचाया।
किन्तु इसबार जब लड़के वालों ने कमली को देखने के बाद रिश्ते से मना किया तो माँ का धैर्य भी जवाब दे गया और माँ ने आज क्षोभ बस उसे खूब जली कटी सुनाई।
वैसे तो कमली ऐसे उलाहने सुनने की आदी हो चूकी थी पर माँ से ऐसी बाते सुनने की अपेक्षा उसे कदापि न थी, कमली को माँ की ये बातें हृदय में शूल की तरह चूभी।
आज समूचे गाँव में बस कमली के नाम की चर्चा चल रही है, आज कमली पर सबको गर्व महसूस हो रहा है, हो भी क्यो न आज उसने सिविल सेवा प्रशासनिक परीक्षा में अव्वल स्थान जो प्राप्त किया है।
कमली कुरूपता की देवी … जी हा आज से पूर्व यही गाँव और यहाँ के वासिन्दे कमली को इसी नाम से पुकारते। इस कुरूपा के कारण पिछले तीन वर्षों में दर्जनों रिश्ते टूटे होंगे कमली के….अब तो माँ बाप , भाई भौजाई सभी तंग आ गये थे कैसे रिश्ता होगा इस लड़की का …. कौन वरण करेगा इस अभागी को। दबी जुबां घरवाले तो यहां तक कहते सुने जाते यह बला मर क्यो न जाती।
जहाँ कमली की कुरूपता घर वालों के लिए अभिशाप बन गई थी वहीं कमली के लिए यहीं कुरूपता वरदान साबित हुआ वह अबाध्य रुप से अपने अध्ययन अध्यापन पें पूर्णतया ध्यान केन्द्रित करती रही और आज परिणाम सबके सामने है लेकिन अफसोस एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न लड़की अपने अपनो की उलाहनों से तंग आकर सदा के लिए इस दुनिया को छोड़ गई थी ।
*********** स्वरचित, स्वप्रमाणित
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”