( लघुकथा) (१ )ग्रहदशा (2) गॊरैया
(1)
( लघुकथा ). ग्रहदशा
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अभी अभी ज्योतिषाचार्य शास्त्री जी घर लॊटकर आये थे ।लोगों का भविष्य बताना, ग्रह दशाओं की अनुकूलता हेतु नग ( राशि पत्थर) बेचना पेशा है उनका …
शास्त्री जी की पत्नि टेलिविजन देख रहीं थीं, उसमे एक विज्ञापन आ रहा था .. अभिमंत्रित किया हुआ यंत्र कीमत 2100/- मात्र, सभी बाधाओं के निराकरण मे शीघ्र ही लाभ मिलेगा ।
शास्त्री जी के बुझे चेहरे को देखकर रहा न गया..
बोलीं … सुनो जी आजकल कुछ सही नही चल रहा, बच्चो के रिजल्ट भी अच्छे नही आये, घर मे सभी की तबीयत को कुछ न कुछ लगा रहता है ऒर आजकल आपका काम भी मंदा चला रहा है तो क्यों न हम यह यंत्र मंगवा लें, जिससे हमारी भी ग्रहदशा बदल जाये…
शास्त्री जी ने गहरी सांस लेते हुये श्रीमति जी पर नजर गड़ाई ऒर कहा….
तुम तो बिल्कुल बुद्धू ही ठहरीं जो इन विज्ञापनों के चक्कर मे आ जाती हो……
गीतेश दुबे✍?
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(2)
(लघुकथा) गौरैया
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वह नन्ही चिड़िया ” गौरैया ” जिसके फुदकने से हमारे घर के आँगन व मुंडेर कभी गुलजार हुआ करते थे, आज विलुप्ति की कगार पर है । यदा कदा कोई एक दिखाई पड़ती है….
आज ऎसे ही एक गौरैया को अपने आँगन मे देख आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता के साथ मूक प्रश्न भरी मेरी निगाहें कह उठीं —–
री गौरैया अब तू कहाँ खो चली है ? पहले की तरह नही दिखाई पड़ती ? पहले तो तुम झुण्ड मे हमारे आँगन मे उतरकर दाने चुगा करती थीं !
प्रत्युत्तर मे मुझे लगा कि वह मुझसे ही पूछ रही हो कि पहले की तरह वे घर, वे आँगन, वे मुंडेरें , वे प्रेम करने वाले लोग भी तो हमें नही दिखाई पड़ते…….
विचारने के लिये प्रश्न छोड़ गाई थी नन्ही गौरैया ।
गीतेश दुबे