लघुकथा *मेला*
लघुकथा विषय मेला
एक राजू नाम का लड़का था। वह काफी होनहार एवं ईमानदार था ।उसकी मां का नाम रीना थी ।परंतु उसकी मां हमेशा बीमार रहती थी। बचपन से ही राजू के पिता इस दुनिया से छोड़ गए। राजू का एक ही सहारा था। उसकी मां और उसकी मां बेसहारा असहाय बीमार पड़ी रहती थी ।राजू नाबालिक था ।फिर भी काम करता ।दो वक्त की रोटी के लिए दिनभर परिश्रम करता और जीवन गुजारा करता ।एक दिन उसकी मां की तबीयत बहुत ही खराब हो गई उसे हॉस्पिटल ले जाना पड़ा। हॉस्पिटल में डॉक्टर साहब बोले कैंसर हो चुका है। ऑपरेशन करना पड़ेगा ।ऑपरेशन के लिए 500000₹ लगेंगे। उसके पास पैसे नहीं थे ।उन्होंने एकांत में बैठकर सोचने लगा रोने लगा पैसे कहां से आए । हॉस्पिटल के ही बगल में एक मेला लगा हुआ था और उस मेले में लाउडीस्पीकर की आवाज जोर जोर से सुनाई दे रही थी कि जो कोई इस लाटरी में प्रथम आएगा उसे 500000 ₹की ईनाम दिया जाएगा। उस आवाज को सुनकर राजू उस मेले कि ओर चल पड़ा। और किस्मत आजमाया कि कहीं से भी मेरी मां की तबीयत ठीक हो जाए और उन्होंने लाटरी में अपने दांव खेला और लॉटरी में इनाम राजू का लगा प्रथम 500000 ₹उनको दिए ।उसी लॉटरी के नाम से अपनी मां की जान बचाई ।उस पैसे को लेकर डॉक्टर साहब को दिए। राजू को देखकर मां की आंखों में आंसू आ गई और सीने से लगा गई। खुशी-खुशी वापस घर की ओर गए।
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रचनाकार डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
पिपरभावना, बलौदाबाजार(छ.ग.)
मो. 8120587822