*** लघुकथा *** ” माहौल देखकर काव्य पाठ करना “
*** लघुकथा ***”
” माहौल देखकर काव्य पाठ करना ”
राजू में कवित्व के सभी गुण थे | बड़े – बड़े मंच पर अपनी कविताओं का पाठ पढ़ने , और मंच के अनुभव अच्छे हो गए थे | आज भी एक नवदुर्गा उत्सव में काव्य पाठ का मौका मिला | मंच संचालन ने राजू के कविता पाठ पर और अपने नाम रोशन का सभी कविओ और सभी जनता के सामने बहुत ही शानदार प्रशंसा कर दी | पहली रचना से तालिओं की गड़गड़ाहट और वाह , वाह की अच्छी प्रतिक्रिया से राजू के अंदर पूर्ण जोश आ गया था | अब तो मैं इस मंच का ” राजा ” बन गया | यही सोच अहंकार की हवा मंच पर राजू के अंदर भर गयी | और मंच संचालन ने और एक रचना की फरमाइश कर दी , फिर क्या था राजू ने सोचा मैं तो खिलाडी हूँ , छोटी से रचना पाठ न करते हुए बड़ी रचना और जनता , श्रोता के माहौल के विपरीत कविता पाठ करते हुए क्या बोल रहे है उसका भी घ्यान रखना नहीं , मंच , आयोजक भूल जाना | फिर श्रोता , जनता से बैठ जाओ , बैठ जाओ का चिल्लाकर कहना और राजू का बड़े दुःख के साथ बैठ जाना | राजू का अंहभाव और दूसरे के चने के झाड़ पर चढ़ाने से , पछतावे के शिवाय कुछ मिलता नहीं | अभी राजू ने माहौल देखकर दूसरे काव्य पाठ में मन को तैयार कर लिया |
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राजू गजभिये